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________________ १७४ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधम उसमें अनेक चित्र खुदे हुए हैं। यहां सीढ़ियों के समीप कुछ चित्र जैन तीर्थंकरों के आकार के पद्मासनासीन हैं जिनको आतताइयों ने तोड़ने-फोड़ने की पूरी कोशिश की थी ऐसा प्रतीत होता है। इसका ऊपरी भाग तो एकदम नष्ट हो चुका है। किले के अन्दर इस विशाल जैनमंदिर के होने से साफ़ प्रकट होता है कि यहां का राज्य परिवार के जैनधर्म से निकट सम्बन्ध था। ६--रयासत गुलेर में जैनमंदिरों के भग्नावशेष (१) जिला कांगड़ा में गुलेर एक प्रसिद्ध नगर है। यहां भी नौ दस जैन मंदिरों के खंडहर हैं। इनमें कोई भी प्रतिमा विराजमान नहीं हैं। सब मंदिर खाली पड़े हैं । एक मंदिर के द्वार पर एक घिसी हुई जिनप्रतिमा दिखलाई पड़ती है। (२) गुलेर से कोई ६ मील की दूरी पर जंगल में एक विशाल बड़ा महत्वशाली मंदिर है जो पहाड़ी को खोदकर बनाया गया है। इसकी कला से ज्ञात होता है कि यह भी जैनमंदिर था। इसे आजकल मसरूर का मंदिर कहते हैं । (३) मालूम हुअा है कि सुजानपुर टीरो के समीप एक प्राचीन मंदिर में एक विशाल पाषाण प्रतिमा है जो कांगड़ा किला में विद्यमान जैनमंदिर की श्री आदिनाथ की प्रतिमा से मिलती-जुलती ढोलबाहा जिला होशियारपुर होशियारपुर से हरियाणा ६ मील उत्तर की तरफ़ है और हरियाणा से ८ मील उत्तर-पूर्व की दूरी पर ढोलबाहा नामक स्थान है। यहां से दो मील की दूरी पर जिनौड़ी नामक स्थान है । यहाँ से अनेक खंडित जैनमूर्तियां प्राप्त हुई हैं। सरकारी पुरातत्त्व विभाग पंजाब ने इन प्रतिमाओं को होशियारपुर में विश्वेश्वरानन्द वैदिक संस्थान में ले जाकर वहां के संग्रहालय में सुरक्षित कर दिया है । इस स्थान के नाम जिनौड़ी से स्पष्ट है कि यहां अनेक जैनमंदिर थे और इनको मानने-पूजने वाले बहुत संख्या में जैन परिवार भी विद्यमान थे। जिनौड़ी शब्द जैन नाम का ही सूचक है। अंग्रेजी के दैनिक समाचार पत्र ट्रीब्यून ता० १८-१०-१९६७ पृष्ठ ३ में एक लेखPunjab State Archives शीर्षक प्रकाशित हुआ था-वह लिखता है-- "The Archaeological organization of Punjab state Archives has locellated nearly 400 sculptures and good collection of the fossils of sea animals in DHOLBAHA The fossils found are of the period when whole area was under water, the fossils are of animals which are generlly in ocean. The age may be estimated 20 LAKH YEARS. Sculptures and broken architectural pieces and all along been scattered of 283 miles. These sculptures are mostly related Shivism and Jainism. Many of these sculptures are of very high Artistic order. Many more may be found if proper excavation is done.(Tribune Dated 18.10.1967 p.3) अर्थात् --पंजाब पुरातत्त्व विभाग ने समुद्री जानवरों के अस्थिपंजर जिन का बीस लाख वर्ष पुराने होने का अनुमान है ढोलबाहा की खुदाई से प्राप्त किये हैं । ये अस्थिपिंजर उस समय के हैं जब कि यह सारा क्षेत्र समुद्र था तथा अतिप्राचीन काल की मूर्तियाँ और इनके पत्थरों के टुकड़े (खंडित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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