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________________ अनुक्रमणिका पृ० सं० ६७ पृ० सं० अध्याय १ जैनधर्म की प्राचीनता २१. बेबीलोन का शासक नेबुचन्दनेझार ६३ और लोकमत २२. जैन प्रतीकों का परिचय २. वेदपूर्व भारतीय संस्कृति २३. तीर्थंकर और प्रतीक पूजा ३. प्राग्वैदिक संस्कृति और वैदिक २४. जैनधर्म का महत्त्व व अर्हत संस्कृति में भेद महावीर का त्यागमय जीवन ४. प्राग्वैदिक आर्हत्-श्रमण-संस्कृति १० श्रमण भगवान् महावीर का तत्त्व५. पाहत्-श्रमण धर्म को मानने वाली ज्ञान जातियां २६. श्रमण भगवान् महावीर तथा ६. जैनधर्म के नाम अहिंसा ७. मोहन-जो-दड़ो ( Mohan-Jo २७. निग्रंथ श्रमण (जैन साधु-साध्वी) Daro) का प्राचार ८. पाश्चर्य है २८. जैन श्रावक-श्राविका (गृहस्थ) का ६. वैदिक साहित्य में ऋषभदेव की धर्म अवताररूप मान्यता १०. वैदिक साहित्य में अरिष्टनेमि का अध्याय २ पंजाब में जैनधर्म उल्लेख व इतिहास १. भरत और भारत ११. जैनधर्म की प्राचीनता के विषय में २. भारतवर्ष में जैनधर्म लोकमत ३. जैनधर्म के प्रचार का मुख्याधार १२. पाहत ऋषभदेव का प्रवृति व ४. वर्तमान काल में प्राचीन इतिहास . निवृतिमय धर्म की दुर्लभता का कारण १३. चौबीस तीर्थकरं विवरण ५. विदेशों में जैनसाहित्य १८ १४. दीर्घायु तुलना ६. प्राचीन इतिहास जानने के साधन १०० १५. ऋषभ और शिव (एकरूपता की ७. पंजाब में जैनधर्म के ऐतिहासिक तुलना) साधनों के प्रभाव का कारण १०२ १६. अष्टापद यानि कैलाश पर्वत ८. स्तूप के विषय में कुछ विचार १०३ १७. जैनधर्म की सर्वव्यापकता (मध्य ६. जैनस्मारकों का बौद्ध होने का एशिया) भ्रम १०४ १८. अनार्य देशों में जैनश्रमण-श्रमणियों १०. पंजाब का नामकरण तथा सीमा १०६ का विहार ५६ | ११. पंजाब में जैनधर्म १०७ १६. पुरातनकाल में विश्व के विशाल १२. गांधार और पुण्ड जनपद क्षेत्र में जैनधर्म का प्रभाव ६१ / १३. कम्बोज और गांधार राष्ट्र २०. फ्रांस के म्यूजियम में श्री ऋषभदेव ! १४. गांधार जनपद राजधानी तक्षशिला ११२ की मूर्ति ६३ | १५. तक्षशिला और पुण्डवर्धन (पेशावर) ११४ mr Kro० 0 ११२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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