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कांगड़ा (हिमाचल) में जैनधर्म
(२४) किला नूरपुर-किले के अंदर विशाल मैनमंदिर जो आजकल ध्वंस पड़ा है (यह किला पठानकोट से कांगड़ा जानेवाली सड़क पर पठानकोट से ६ मील की दूरी पर है।)
(२५) ढोलबाहा जिनौड़ी-होशियारपुर के निकट यहाँ पर बहुत जैनमंदिर थे । जिनके खंडहर पड़े थे सरकार के पुरातत्त्व विभाग ने यहाँ से अनेक तीर्थ करों की प्रतिमाएँ प्राप्त की हैं । जो होशियारपुर में विश्वेश्वरानन्द वैदिक संस्थान में सुरक्षित की गई हैं। जहाँ से ये मूर्तियां निकली हैं उस स्थान का नाम वर्तमान में जिनौड़ी है। जिसका अर्थ होता है जैन मंदिर ।
यहां पर उन्हीं जैन मंदिरों जैनतीर्थों का उल्लेख किया है जो पाँच सात यात्रा विवरणों से ज्ञात हो सका है। इससे यह नहीं समझ लेना चाहिए कि इस क्षेत्र में इतने ही जैनमंदिर थे। प्राचीन काल में इस क्षेत्र में जैनमंदिरों और जैनतीर्थों का खूब ही विस्तार था। परन्तु यातायात के साधन न होने के बराबर होने से तथा पहाड़ों के मार्ग दुर्गम होने से सब स्थानों पर यात्री लोग पहुँच भी नहीं पाते थे। इसलिए कतिपय स्थानों में ही बहुत थोड़े लोग पहुँच पाते थे ।
__ खेद का विषय है कि इन मंदिरों में से आज एक भी विद्यमान नहीं है। इन मंदिरों का विनाश कब कब और किस-किस आततायी ने किया, इसका पता नहीं। तथा यहाँ के जैन परिवारों का क्या हुआ, वे कहाँ चले गये, समाप्त हो गये अथवा उनका धर्मपरिवर्तित कर लिया गया, इसका भी कुछ पता नहीं।
मालूम होता है कि इन मंदिरों का विनाश विक्रम की १७ वी १८ वीं शताब्दी में औरंगजेव के राज्यकाल में हुआ होगा इससे पहले नहीं । क्योंकि कनकसोम रचित नगरकोट प्रादीश्वर स्तोत्र (वि० सं० १६३४) के अनुसार यहां के जैनमंदिर विद्यमान होने चाहिये । वि० सं० १८७४ चैत्र सुदि ७ को श्री ज्ञानसार जी रचित 'जिनप्रतिमा स्थापन' ग्रंथ के अनुसार उस समय से पूर्व ही कांगड़ा की जनप्रतिमा क्षेत्रपाल के रूप में पूजी जाने लगी थी। यथा
__ "जिस उत्तरदिशा में तीर्थ छै...... [जैन] प्रतिमा ने क्षेत्रपाल करी पूजे छ ते जैनी ने वांदवा पूजवी नहीं।"
"तथा अष्टभुजा (श्री आदिनाथ भगवान की शासनदेवी चक्रेश्वरी) महिसासुर के नाम से पूजी जाने लगी थी।"
तथापि इन मंदिरों के स्मृति चिन्ह इस क्षेत्र में कुछ-कुछ अब भी विद्यमान है । कुछ प्राचीन जैन मूर्तियां आज भी इस पूर्वकालीन वृतांत की सत्यता को स्पष्ट प्रकट कर रही है। जिसका हम आगे उल्लेख करेंगे।
(२६) खरतरगच्छीय श्री जिनपति सूरि की प्राज्ञा से जिनपाल उपाध्याय ने विक्रम संवत् १२७३ वृहद्वार में नगरकोटीय राजाधिराज पृथ्वीचन्द्र की सभा में काश्मीरी पंडित मनोदानन्द के साथ शास्त्रार्थ करके उसे पराजित किया था। राजा पृथ्वीचन्द्र ने उपाध्याय जी को जयपत्र प्रदान किया था।
काँगड़ा जिला तथा प्रास-पास का क्षेत्र कांगड़ा जिला होशियारपुर जिले के साथ मिलता है। इस जिले में तथा पास-पास के प्रदेश में उपलब्ध जैन पुरातत्त्व सामग्री का यहां संक्षिप्त विवरण देते हैं
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