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________________ काश्मीर में जैनधर्म १४७ गये। काश्मीर के मुसलमान जेनुलाब्दी ने १५ राजतरंगिणियों का पता लगाया था। जिनमें काश्मीर का इतिहास लिखा गया था। उनमें से आज एक भी उपलब्ध नहीं है और न ही उनके नामों तथा लेखकों का पता मिलता है । ईस्वी सन् १३६६ से १४१६ तक १७ वर्षों का समय काश्मीर के लिए इतिहास का भयंकर काल था। लगभग सभी मंदिर तथा मूर्तियां नष्ट कर दी गई थीं। एवं स्तूपस्मारक धराशायी कर दिये गये थे । मंदिरों में से प्रखूट सोना, चांदी, जवाहरात, धन-दौलत लूट ली गई थी (लूट का कुछ विवरण आगे कांगड़ा के इतिहास में देंगे) सारे काश्मीर में ११ ब्राह्मण घरों के अतिरिक्त सभी को मुसलमान बना लिया गया था। इसलिये इस जनपद की कुछ भी प्राचीन इतिहास सामग्री उपलब्ध नहीं है। परिशिष्ट लिखा है और उसमें जो उद्गार उन्होंने प्रकट किये हैं, यह विषय खास मनन गोग्य होने से यहां उद्धृत करते हैं : वैद्य महोदय लिखते हैं कि, “सोमनाथ संबंधी मूर्तिभंग और लूट के प्रसंग पर से हिंदुओं की मूर्तिपूजा के विषय में सूझ गए कुछ विचार • हम यहां परिशिष्ट रूप में देते हैं । ईसा की दसवीं शताब्दी के अन्त में भारत में मूर्तिपूजा के विषय में लोगों में बहुत ही भोलापन प्रसार पा चुका था। इसलिए मुसलमान माक्रमण कारियों को अपना फायदा करने के लिए साधन मिले थे। महमूद के मूर्तिभंजक आक्रमण हिन्दुओं की भोलेपन से भरी आंखों को खोलने के लिए ही हुए थे, ऐसा कह सकते हैं। पर इन अाक्रमणों से निकलने वाले बोध को दुर्भाग्यवश आज तक भी हिन्दुओ ने ग्रहण नहीं किया ऐसा कहना अनुचित न होगा । मूर्तिपूजा वेदों में कही है या नहीं ? यह धार्मिक प्रश्न मैं यहां चर्चित करना नहीं चाहता। वर्तमान में हिन्दूधर्म में मूर्तिपूजा प्रत्यक्ष मान्य है और ईश्वर प्रणिधान की दृष्टि से यह योग्य रूप से मान्य है ऐसा कह सकते हैं । पर मूर्तिपूजा के विषय में अनेक भ्रांत मान्यताएं मनुष्य के मन में घर कर लेती हैं। विशेषकर १. इस मूति में ही इस देवता की शक्ति रही हुई है ऐसी भ्रांत भूलभरी मान्यता घर कर बैठी है यह मान्यता मात्र हिन्दुनों को ही लागू पड़ती हो ऐसी बात नहीं है, किन्तु इससे भी प्राचीनकाल से जहां-जहां मूर्तिपूजा चालू थी, वहां-वहां यह बात तो थी ही । बौद्धधर्म ने प्रारंभ में तो ईश्वर का अस्तित्व है अथवा नहीं इस विषय में सर्वथा मौन साधा था । पर बाद में यह मूर्तिपूजा मानने वाला बना और चारों तरफ बुद्ध की ही मूर्तियां पूजी जाने लगीं। हुएनसांग चाहे कितना ही विद्वान तथा तत्त्वज्ञानी था पर उसकी बुद्ध के शरीरावशेषो में चमत्कारी सामर्थ्य था ऐसी मान्यता जानकर आश्चर्य होता है। . मति में रहा हुमा अद्भुत सामर्थ्य ऐसी भ्रांत-अनर्गल कल्पणा इतनी अधिक बढ़ गई थी कि कनौज का प्रतिहार समाट म सलमानो से म लतान छीन लेने के लिए समर्थवान होता हुआ भी जब-जब वह म सलमानो को जीतने के लिए जाता था तब-तब वहां के मुसलमान अधिकारी "यदि तुम आगे बढ़ोगे तो यहां की जो सूर्य की प्रसिद्ध मूर्ति है उसे हम तोड़ देंगे।" ऐसी धमकियां देते और वह पीछे चला जाता । पश्चिम के देशों में रोमन और ग्रीक लोग दूसरे लोगों की अपेक्षा तत्त्वज्ञान में बढ़-चढ़े थे तथापि उनका भी कई मूर्तियो में अद्भुत विश्वास था । ईसाई धर्म में शुरुप्रात में निराकार ईश्वर का उपदेश दिया गया था। परन्तु आगे चलकर इसका प्रसार मूर्तिपूजक रोमन और ग्रीक लोगो में जो हुआ वह मति में कोई चमत्कार अथवा सामर्थ्य नहीं है, यह सिद्ध करने के लिए हुआ । "सोमनाथ के पुजारियों की मूर्तिभंजक महमूद गजनबी को नष्ट करने के लिए सोमनाथ की मूर्ति के आगे निरर्थक गिड़-गिराहटपूर्वक की गई प्रार्थना को पढ़कर उनके भोलेपन और अबोषता के लिए कलेजा मुंह को आता है।" यह पूर्वकाल में छह सौ वर्ष पहले हो गए अलेक्जेंड्रिया की सिरसिप की विख्यात मूर्ति तोड़ दी गई, उस समय की घटना का वर्णन करते हुए गिबन लिखता है कि : "अलेक्जेंड्रिया शहर सिरसिप को मूर्ति के संरक्षण में सुरक्षित है। वहां के लोगों के मन में यह धारणा बढ़ हो चुकी थी कि जो कोई इस मूर्ति को हानि पहुंचाएगा तो तत्काल आकाश और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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