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________________ काश्मीर में जैनधर्म १४१ जम्भेरी, १०. कच्छ, ११. उच्चनगर (तक्षशिला-गाँधार-पुण्ड्र आदि प्रदेश), १२. काश्मीर १३. जालंधर (कांगड़ा आदि त्रिगर्त प्रदेश), १४. काशी, १५. आभीर, १६. महाराष्ट्र, १७. कोकण, १८. करणाटदेश। इससे यह स्पष्ट है कि इसका राज्य विस्तार काश्मीर, गांधार, सिन्धु-सौवीर, जालन्धर अर्थात् सारे पंजाब में भी था। पंजाब के बाहर तुर्किस्तान तक भी विस्तृत था। इसकी राज्य सीमा, उत्तर में काश्मीर और तुर्किस्तान, पश्चिम में कुरु, दक्षिण में लंका और पूर्व में मगध तक थी। कुमारपाल ने श्वे० प्राचार्य हेमचन्द्र से वि० सं० १२१६ में सम्यक्त्व मूल बारह व्रतों को ग्रहण किया और जैनधर्मी श्रावक बना । परमार्हत विरद प्राप्त कर चरित्रवान और एक पत्नीव्रत का पालन करने वाला बना तथा रानी भोपल की मृत्यु के बाद प्राजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया। इसने राज्य विस्तार के बाद युद्धों से विराम लिया । राज्य में पशु हिंसा, पशुबलि, शिकार, मद्यपान, जुग्रा, वेश्या व्यसन आदि का राज्याज्ञा से निषेध किया। मृत्युदंड बन्द कर दिया। सारे राज्य में अमारी(अ+ मारी यानी जीवो को न मारने,अहिंसा पालन)की घोषणा कर दी। ऐसी प्राज्ञा से इस धंधाधारियो को राज्यकोश से सहायता देकर अन्य अहिंसक धंधो में लगा दिया। दीन दुखियों को, साधनहीन विधवाओं को निर्वाह की ब्यवस्था कर उनके सत्व की रक्षा की। निःसन्तानी के धन का त्याग, यज्ञों में पशु तथा नरबलि के स्थान पर अन्न के हवन का प्रचलन कराया। (१) कुमारपाल प्रजा का पालन पुत्र वत करता था। अपने राज्य में एक भी प्राणी को दुखी न रखने का मनोरथ रखता था । प्रजा की अवस्था जानने के लिए गुप्तवेश में नगरों में भ्रमण करता था। तब भ्रमण के समय उसे कोई दुखी दिखाई पड़ता तो उसका दुःख दूर करने का प्रयत्न करता था। प्राचार्य हेमचन्द्र द्वाश्रय काव्य के अन्तिम २०वें सर्ग में महाराजा के चरित्र का उल्लेख करते हुए लिखते हैं कि कुमारपाल एक दिन मार्ग में एक गरीब मनुष्य को पीड़ित और जमीन पर घसीटते हुए पांच सात बकरों को ले जाते हुए देखा । वह इन बकरों को कसाई के यहाँ बेचने के लिए ले जा रहा था। महाराजा के पूछने पर उसने कहा कि मैं इन्हें कसाई के वहां बेचकर अपना और बालबच्चों का उदर निर्वाह करूंगा। यह सुन कर राजा को लगा कि मेरे अविवेक से ही ये लोग हिंसा में प्रवृत्त होते हैं । इसलिए मेरे प्रजापति नाम को धिक्कार है । राजभवन में आकर उसने अधिकारियों को सख्त श्राज्ञा दी कि-१- जो झूठी प्रतिज्ञा करे उसे शिक्षा (दण्ड) दी जावेगी। २.जो परस्त्री-लम्पट होगा उसे विशेष शिक्षा दी जावेगी। ३-जो जीवहिंसा करेगा उसे सबसे अधिक कठोर दंड दिया जावेगा। इस प्रकार के आज्ञापत्र सारे राज्य में अपने अधिकारियों द्वारा भेजकर सारी प्रजा को सावधान कर दिया। इससे सारे महान राज्य में त्रिकूटाचल (लंका तक अमारी का प्रवर्तन किया। ___ संघपति बनकर चतुर्विध संघ के साथ श@जय, गिरनार आदि अनेक तीर्थों की यात्राएं अनेक बार की । सारे राज्य में १४४० नये जैनमंदिरों का निर्माण कराया और उन पर स्वर्ण कलश चढ़ाये । १६०० पुराने जैनमंदिरों का जीर्णोद्धार (मुरम्मत) कराया। अपनी राजधानी पाटण में अनेक जैन मंदिर बनवाये जिन में सर्वोपरि त्रिभुवनपाल विहार था । विद्वानों की संगत तथा धर्मचर्चा में बहुत रुचि रखता था । प्राचार्य हेमचन्द्र के मार्गदर्शन से स्वयं राजकार्य तथा सांस्कृतिक कार्यों का संचालन करता था। प्राचार्य श्री हेमचन्द्र तथा इनके शिष्य मंडल ने कुमारपाल के सहयोग से प्रभूत साहित्य की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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