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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
उच्चनगर
यह पंजाब की पश्चिमोत्तर सीमाप्रदेश की एक प्रसिद्ध नगरी थी । यहाँ पर भी जैनधर्म
७- प्रर्य प्रतिबद्ध का जीवन विवरण पट्टावलीकारों को ज्ञात नहीं है, इसलिए इनके विषय में वे मौन हैं। सम्भवतः ये पंजाब श्रादि जनपदों में विचरण किये होंगे । पुनः अन्य प्रदेशों में नहीं गये होंगे ? यही कारण है कि इनके जीवन प्रसंगों से पट्टावलीकार अनभिज्ञ रहे होंगे । हो सकता है कि इस परम्परा सम्बन्धी पट्टावलियों तथा जीवन प्रसंगों का इनके शिष्यों प्रशिष्यों
संकलन किया हो, लिखा भी हो; किन्तु पंजाब में लिखा गया साहित्य विक्रम की १६वीं शताब्दी से पहले का लिपिबद्ध किया हुआ उपलब्ध नहीं है । इसका कारण यह है कि सर्व प्रथम धर्मान्ध विदेशियों ने सदा भारत में पंजाब की धरती पर पदार्पण करके इसके साहित्य, स्मारकों, मंदिरों, मूर्तियों आदि को नष्ट-भ्रष्ट किया ।
(१) श्रार्य सुहस्ति के शिष्य रोहण से उद्देह गण निकला। उनके शिष्यों प्रशिष्यों द्वारा चार शाखाएं और छः कुल निकले । ( १ ) उडुंबरिका, (२) मासपूरिका, (३) मातपत्रिका, (४) पूर्णपत्रिका ये चार शाखाएं तथा ( १ ) नागभूत, (२) सोमभूत, (३) उल्लगच्छ, (६) हस्तलिप्त, (५) नंदिज्ज, (६) पारिहासिक ये छः कुल निकले ।
(२) प्रार्य सुहस्ति के शिष्य आर्य भद्रयश उड़वाटिक गण निकला। उनके शिष्यों प्रशिष्यों द्वारा चार शाखाएं और तीन कुल निकले । (१) चंपिज्जिया, (२) भद्दिज्जिया, (३) कादिका, (४) मेघलिज्जिया ते चार शाखाएं और ( १ ) भद्रयशिक, (२) भद्रगुप्तिक, (२) यशोभद्र ये तीन कुल निकले ।
(३) श्रार्य सुहस्ति के शिष्य श्रार्य कामाद्धि से वेसवाटिक गण निकला। उन के शिष्योंप्रशिष्यों द्वारा चार शाखाएं और चार कुल निकले (१) श्रावस्तिका, (२) राज्यपालिका, (३) अन्तरिज्जिया, और ( ४ ) सेमलिज्जिया ये चार शाखाएं तथा ( १ ) गणिक, (२) मेधिक, (३) कामदिक, ( ४ ) इन्द्रपूरक ये चार कुल निकले ।
(४) प्रार्य सुहस्ति के शिष्य प्रार्य ऋषिगुप्त से माणक गण निकला, उनके शिष्यों प्रशिष्यों द्वारा चार शाखाएं और तीन कुल निकले - ( १ ) काश्यपिका, (२) गौतमिका, (३) वाशिष्टिका, (४) सौराष्ट्रका ये चार शाखाएं तथा (१) ऋषिगुप्तक, ऋषिदत्तक, (३) अभिजयन्त ये तीन कुल निकले ।
(५) आर्य सुहस्ति के शिष्य -- श्रीगुप्त से चारण गण निकला । इनके शिष्यों प्रशिष्यों के द्वारा चार शाखाएं और सात कुल निकले । (१) हरितमालगिरि, (२) संकासिका, (३) गवेधुका, (४) वज्रनागरी ये चार शाखाएं और (१) वत्सलिज्ज, (२) प्रीतिर्धार्मिक, (३) हालिज्ज, (४) पुष्पमित्रिक, (५) भालिज्ज, (६) ग्रार्यवेडक, (७) कृष्णसख; ये सात कुल निकले ।
८ - उच्च नागरी शाखा संस्थापक प्रार्य शांतिश्रेणिक के चार शिष्य थे। उनसे चार शाखाएं निकलीं । (१) आर्य सैनिक से सेनिका शाखा, (२) श्रार्य तापस से तापसी शाखा, (३) श्रार्य कुवेर से कुवेरी शाखा और (४) ऋषिपालित से आर्य ऋषिपालित शाखा निकली ।
६ - वज्रस्वामी के तीन शिष्य थे, उनसे तीन शाखाएं निकलीं ( १ ) आर्यं पद्म से आर्यपद्म शाखा (२) श्रार्य रथ से जयन्ति शाखा, (३) श्रार्य वज्र सेन से श्रार्यनागिला शाखा निकली 1
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