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________________ गांधार-तक्षशिला में जैन धर्म ११६ ऐसा जान पड़ता है कि प्रार्य सुहस्ति ने अपने शिष्यों प्रशिष्यों को सम्प्रति की प्रेरणा से पंजाब में भी जैनधर्म के प्रचार के लिये भेजा होगा । अत: उपर्युक्त चारों पट्टधर अपने शिष्य परिवार के साथ तथा उनके बाद भी शिष्यों प्रशिष्यों के साथ गांधार से लेकर सारे पंजाब में विचरे होंगे। इस बात की पुष्टि के प्रमाण भी उपलब्ध हैं। हम लिख पाये हैं कि गांधार की राजधानी प्रश्न वाहन (पण्हवाहण-पेशावर) भी रही है । श्री कल्पसूत्र की स्थविरावली से ज्ञात होता है कि आर्य सुस्थित और आर्य सुप्रतिबद्ध की शिष्य परम्परा से चार कुल निकले : १ -- बंभलिज्ज, २-वत्थ लिज्ज, ३–वाणिज्ज और ४- पण्हवाहणय (प्रश्नवाहनक)1 आर्य सूस्थित और आर्य सुप्रतिबद्ध (दोनों गुरुभाइयों) का साधु अवस्था का समय वीर निर्वाण संवत् २७४ से ३३६ (वि० पू० १९६ से १३१ अथवा ई० पू० २५३ से १८८) का है। अतः ये कुल वीर संवत् की तीसरी चौथी शताब्दी अथवा ईसा पूर्व दूसरी-तीसरी शताब्दी के मध्य काल में निकले हैं, यह बात निश्चित है। ___ उपयुक्त तीन कुलों का नाम पड़ने का क्या प्राधार है यह ऐतिहासज्ञों की खोज का विषय है । किन्तु प्रश्नवाहनक कुल की उत्पत्ति गांधार जनपद की राजधानी प्रश्नवाहन (पेशावर) के नाम से हुई है जो उपर्युक्त प्राचार्यों के शिष्य-प्रशिष्यों के इस क्षेत्र में रहने के कारण इस क्षेत्र के नाम से प्रसिद्धि पाया। ___यहाँ पर प्रश्नवाहनक कुल के विषय में विशेष विचार करने की आवश्यकता है । हम लिख आए हैं कि प्रश्नवाहन---पेशावर भी गांधार की राजधानी थी। तथा गांधार के समीप के जनपद का नाम पुण्ड्र था। इसकी राजधानी भी पुण्ड्रवर्धन के नाम से पेशावर रही है । पेशावर भारत की पश्चिमोत्तर दिशा में तक्षशिला की उत्तर दिशा में अवस्थित है । कुल का एक अर्थ जनपद भी है। यथा"कुलं जनपदे गोत्र सजातीय गणेऽपि ।" (अमरकोश निर्णयसागर प्रेस ई० स० १६२६ पृ० २५०) कुल शब्द का अर्थ जनपद, गोत्र तथा सजातीय गण भी होता है । अतः प्रश्नवाहनक कुल का अर्थ यह हुआ कि प्रश्नवाहन जिसकी राजधानी है ऐसे जनपद में विचरणे वाले जैन श्रमणों का सजातीय गण (एक गुरुपरम्परा का समुदाय) । १-हम लिख पाये है कि तक्षशिला, पुण्ड्रवर्धन, प्रश्न वाहन (पण्हवाहण) ये सब वाहिक जनपद में थे जो पंजाब का प्राचीन नाम था। प्राचीन काल में तक्षशिला और प्रश्न वाहन पंजाब के प्रसिद्ध नगर थे और जैनधर्म के केन्द्र थे। श्वेतांबर जैनों के चौरासी गच्छों में एक गांधारा गच्छ का नाम भी आता है। गांधार जनपद में विचरणे वाले जैन श्रमण-श्रमणियाँ गांधारा गच्छ के नाम से प्रख्यात हुए। यह गच्छ विक्रम को १४वीं शताब्दी तक विद्यमान था । २-ऐसा ज्ञात होता है कि तक्षशिला ध्वंस कर देने के बाद इसके निकटस्थ उच्चनगर नामक नगर ने इसका स्थान ले लिया था। उच्चनगर तक्षशिला के समीपवर्ती पर्वत प्रदेश में सिन्धु 1-कल्पसूत्र स्थविरावली व्याख्यान ८ । 2-जैन साहित्य संशोधक त्रैमासिक खंड ३ अंक १ पृष्ठ ३२ गच्छ नं० ६४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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