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________________ ११४ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म यह पुक्खली भी वस्तुतः पुष्कलावती का दूसरा नाम है । आईने अकबरी में भी पुक्खली नाम आया है। पेश की भूल से यदुनाथ सरकार ने अपने अनुवाद खण्ड २ पृष्ठ ३६७ में इसे पक्खली लिखा है । इसकी सीमा आईने अकबरी में इस प्रकार बतलाई है - 'पूर्व में काश्मीर, उत्तर में कठोर, दक्षिण मेंगखर और पश्चिम में अटक - बनास | अतः उपर्युक्त १. पुष्कलावती, २. पुरुषपुर, ३. पुंड्रवर्धन और ४. पुक्खली ये सब नाम वर्त्तमान पेशावर के ही हैं । ५.६. पण्हवाहण – संस्कृत में इसे प्रश्नवाहन कहते हैं अर्थात् दोनों नाम समानार्थक हैं । ये भी पेशावर के नाम थे और इस राजधानी के अन्तर्गत सारे जनपद को इस नाम से पहचाना जाता था। इसका पुण्ड्र जनपद के नाम से भगवती सूत्र और समराइच्च कहा में उल्लेख हुआ है । ७-८ -- शाकम्भरी तक्षशिला का दूसरा नाम है । तक्षशिला के प्राठ नाम मिलते हैं । (१) शाकम्भरी, (२) तक्षशिला, (३) टेक्सिला, (४) कुणाल देश, (५) ग़ज़नी, (६) शाह की ढेरी, (७) धर्मचक्र भूमिका और ( ८ ) छेदी मस्तक । ३ १ - इसका प्राचीनतम नाम तक्षशिला है, उसके बाद इस का नाम २ - शाकम्भरी पड़ा । सम्राट सम्प्रति मौर्य ने अपने अन्ध पिता कुणाल के निवास के लिए तक्षशिला में व्यवस्था की थी । वहाँ सम्प्रति ने कुणाल की धर्मोपासना के लिए एक जैनस्तूप का निर्माण भी करवाया था कुणाल के यहाँ निवास करने से इसका नाम कुणाल देश पड़ा। इसकी पुष्टि के लिए पार्श्वनाथ संतानीय उपकेश गच्छीय जैनाचार्य श्री कक्क सूरि के चरित्र से होती है। उसमें वर्णन है कि कुणाल देश के लोहाकोट (लाहौर) नगर में आप पधारे थे । उस समय यहां का मन्त्री नागसेन था । उसने १५ अन्य नर-नारियों के साथ प्राचार्य कक्क सूरि के पास दीक्षा ली। यहां कुणाल देश में लाहौर कहा है जो पाकिस्तान बनने से पहले पंजाब की राजधानी थी । स्पष्ट है कि कुणाल देश तक्षशिला का ही नाम था । ४. टेक्सिला - अंग्रेजों के राज्य में तक्षशिला को इस नाम से संबोधित किया जाता था । बौद्धों ने भी इसे गांधार की राजधानी माना है। ५. गज़नी - महमूद गजनी के समय में इसका नाम गज़नी पड़ा । ६. शाह की ढेरी - तक्षशिला के खंडहरों की खुदायी होने से पहले इस क्षेत्र की जनता इसे शाह की ढेरी के नाम से पहचानती थी । श्रोसवाल श्वेतांबर जैन प्राचीनकाल से शाह की उपाधि से विभूषित थे । ७ - प्रभु ऋषभदेव के पधारने पर बाहुबली ने यहाँ विश्व के सर्वप्रथम धर्मचक्र तीर्थ की स्थापना की थी । इसलिए इस का नाम धर्मचक्र भूमिका पड़ा । अतः धर्मचक्र प्रवर्तन सर्वप्रथम जैन धर्म के उपासकों द्वारा हुआ । ८ - चीन देश की भाषा में इसका नाम छेदीमस्तक है । तक्षशिला और पुण्ड्रवर्धन (पेशावर ) प्राचीन काल में तक्षशिला बहुत प्रसिद्ध एवं जैन संस्कृति का महत्वपूर्ण केन्द्र रहा है । भगवान ऋषभदेव ने अपने द्वितीय पुत्र बाहुबली को तक्षशिला का राज्य दिया था । १. एकदा छद्मस्थावस्था ( दीक्षा लेकर केवलज्ञान होने से पहले की अवस्था ) में विहार करते हुए (पैदल चलते हुए) अर्हत् ऋषभ तक्षशिला में पधारे। बाहुबली को रात के समय प्रभु के पधारने के समाचार मिले । उसने सोचा कि कल प्रातःकाल होते ही मैं प्रभु को वंदन करने के लिए उद्यान में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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