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________________ जैन ऐतिहासिक साधनों के प्रभाव का कारण १०.५ खोज का ध्यान ही नहीं दिया गया । खेद का विषय तो यह है कि पंजाब में भी अनेक स्थानों से प्राप्त प्राचीन जैनमूर्तियों के लेखों और शिलालेखों को आजतक पुरातत्त्वज्ञों ने पढ़ने का श्रेय प्राप्त नहीं किया । अतः पंजाब में जैनधर्म के इतिहास की जानकारी के लिये उनका पढ़ा जाना भी ज़रूरी है । आजकल जैनों की आबादी अधिकतर गुजरात, सौराष्ट्र, राजस्थान, पश्चिमी भारत तथा दक्षिण भारत में है और भारत के अन्य प्रान्तों में भी जैन लोग अल्प संख्या में प्राबाद हैं । परन्तु हमेशा ऐसी बात नहीं रही । हम जैनधर्म की प्राचीनता के अध्याय में लिख आये हैं कि ऋषभदेव से लेकर महावीर आदि अर्हतों (तीर्थंकरों) का धर्म सारे भारत में तथा इसके बाहर भी विश्व के दूर-दूर देशों तक फैला हुआ था । एक उदाहरण लीजिये- बंगाल, बिहार, उड़ीसा, भूटान, नेपाल, काश्मीर, बरमा, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बिलोचिस्तान, काबुल, चीन, ईरान, ईराक, शकस्तान, तिब्बत, तुर्किस्तान, लंका आदि देशों में प्राचीनकाल में सर्वत्र जैनधर्म का बोलबाला था, आज वहाँ पर जैनधर्म का नाम लेवा एक भी व्यक्ति वहां का मूल निवासी नहीं रहा । वहां न तो कोई जैन इमारत, स्मारक आज विद्यमान है न जैनों की आबादी | जब कि विक्रम की सातवीं शताब्दी में जैनों की संख्या उन देशों में बहुत ज्यादा थी । विक्रम की १६ वीं, १७ वीं शताब्दी में भी तुर्किस्तान, चीन आदि देशों में जैन यात्री भारत से यात्रा करने के लिए जाते थे, जिनका वर्णन हम पहले कर आये हैं । ये सब स्थान विदेशियों की बर्बरता र धर्मान्धता के शिकार हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त जैन साहित्य अर्द्धमागधी भाषा में लिपिबद्ध है । उस लिपि को भी बंगालियों ने बंगला लिपि में परिवर्तित करके जैनवांगमय को बहुत क्षति पहुंचाई है। जैनधर्म का उद्गम स्थान मुख्य रूप से बंगाल, बिहार, उत्तरप्रदेश रहा है अतः इन सब देशों में जैनधर्म का अति प्राचीन काल से प्रचार प्रभाव और प्रसार रहा है । इस देश की प्राचीन मातृभाषा अर्द्धमागधी थी । बंगालियों ने आज से हजार वर्ष पूर्व उस लिपिका रूपांतर किया पश्चात् उन नवीन लिपियों का शिक्षण और प्रसार हो जाने से जैन श्रमण श्रमणियों के विहार के प्रभाव से, जैनधर्म का उपदेश न मिलने से अन्य प्रांतों के जैनसंघों के साथ सम्पर्क छूट जाने से एवं जैनेतर विद्वानों का जैनधर्म के विरुद्ध और अपने सिद्धान्तों का जोरशोर से प्रचार और प्रसार पा जाने के कारण इन क्षेत्रों से जैनधर्म एकदम लुप्त हो गया । पंजाब तो विदेशियों के आक्रमणों, तोड़-फोड़ और लूट-मार का सदा शिकार होता रहा; इस लिये यहां का प्राचीन इतिहास लिखने के साधनों का प्रभाव सा ही है । यही कारण है कि आज तक पंजाब का सांगोपांग इतिहास किसी ने लिखा हो हमारे देखने में नहीं आया । और यह बात भी सर्वथा सत्य है कि पंजाब के जैनधर्म का इतिहास आज तक लिखा ही नहीं गया । फिर भी हमने इस दुसाध्य दुरुह कार्य को पूरा करने का संकल्प किया है । जहाँ तक हमारी सामर्थ्य और योग्यता है इसे अधिक से अधिक प्रामाणिक और प्रौढ़ बनाने का प्रयास किया है। पंजाब में ध्वंसकारी घटनाओं का मागे प्रसंगोपात प्रकाश डालते रहेंगे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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