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अध्याय दो पंजाब में जैनधर्म
भरत और भारत
यह बात सहज सिद्ध है कि भारत में तीन भरत प्रसिद्ध हुए हैं । एक ऋषभ के पुत्र भरत, दूसरे दुष्यन्त के पुत्र भरत, तीसरे राम के भाई भरत । राम के भाई भरत कभी राज्य गद्दी पर नहीं बैठे, इसलिए इस देश का नामकरण उनके नाम से सम्बन्धित नहीं हो सकता । कतिपय विद्वानों का मत है कि दुष्यन्त के पुत्र भरत के नाम से इस देश का नाम भारत पड़ा। इस का कारण यह है कि सायण ऋग्वेद संहिता के भाष्य में यही भूल की गई है । दूसरा कारण यह है कि कवि कालीदास के शकुन्तलम् नाटक की विश्वव्यापी ख्याति ने दौष्यन्ति भरत को जनमानस में प्रतिष्ठित कर दिया। उसी भरत को लोग इस देश के भारत नाम का मूल्याँकन मान बैठे । परन्तु प्राचीन साहित्य इस बात की साक्षी नहीं देता। उसके अनुसार तो ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र भरत ही भारत नाम के आधार हैं। इस बात की पुष्टि वेद, पुराण आदि ब्राह्मणीय साहित्य तथा जैनों का साहित्य भी करते हैं ।
जरा-मुत्यु-भयं नास्ति धर्माधर्मी युगादिकम् । ना धर्म माध्यमं तुल्या हिमादेशात्तु नाभितः ॥ ऋषभो मरुदेव्यां च ऋषभाद् भरतोऽभवत् । ऋषभोऽदात् श्रीपुत्र शाल्यग्रामे हरिगतः ॥
भरताद् भारतवर्ष भरतात सुमतिस्त्वभूत ।। (अग्निपुराणे १०।१०-११) (१) अर्थात् ---उस हिमवत प्रदेश (भारवर्ष को पहले हिमवत प्रदेश कहते थे) में जरा (बढ़ापा) और मृत्यु का भय नहीं था । धर्म और अर्धम भी नहीं थे। उनमें माध्यम समभाव था। वहां नाभि राजा से मरुदेवी ने ऋषभ को जन्म दिया। ऋषभ से भरत हुए। ऋषभ ने भरत को राज्य प्रदान कर सन्यास ले लिया। भरत से इस देश का नाम भारतवर्ष हुमा । भरत का पुत्र सुमति था।
इसी आशय के उल्लेख- (२) मारकण्डेय पुराण ५०।३६-४२; (३) ब्रह्माण्ड पुराण पूर्व खण्ड २।१४; (४) वायुपुराण ३०।५०-५३; (५) बृहद नारदपुराण पूर्व खण्ड ४६।५-६; (६) लिंगपुराण ४६।१६-२३; (७) स्कन्धपुराण ३७१५७; (८) मराठी सार्थ एकनाथी भागवत २४१४४-४५; (६) शिवपुराण ३७।५७ आदि में पाये जाते हैं । दिगम्बर जैन नथ-प्रमोद भरतः प्रमनिर्भर बन्धुता तदा ।
तमहावद् भरतं भावि समस्त भरताधिपम् ॥ तन्नाम्ना भारतं वर्षमिति हासोज्जनास्वदम् । हिमाद्रे रासमुद्राच्च क्षेत्रं चक्राभूतामिदम् ॥
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