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का त्याग, रात्रि को तिविहार पच्चक्खाण, प्रातःकाल नवकारसी-पोरसी का पच्चक्खाण, प्रतिदिन सामायिक प्रतिक्रमण देवदर्शन-पूजन करने को प्रतिज्ञाबद्ध हैं । अजमेर, बीजापुर, राजकोट, श्राजिम - गंज, कलकत्ता, गुजरांवाला, मद्रास, अम्बाला, दिल्ली आदि अनेक स्थानों के अनेकों व्यक्ति एवं साधु-साध्वियां आपके ज्ञान व शिक्षण से लाभ उठा चुके हैं । धर्म संबंधी शंकाओं का समाधान करने की तर्कयुक्त शैली जिज्ञासुओं को मंत्रमुग्ध किए बिना नहीं रह सकती । जैन समाज का गौरव है कि उसे ऐसे सच्चरित्र सम्यग्दृष्टि विद्वान की उपलब्धि हुई है । कृशगात्र और साधारण सी वेशभूषा में प्रापकी प्रतिभा और विद्वता को पहचान पाना साधारण व्यक्ति के लिए श्रापके सम्पर्क में प्राए बिना संभव नहीं तो कठिन अवश्य है ।
शास्त्री जी जब अपने जीवन की पिछली घटनाओं का वर्णन करते हैं तो लगता है मानो वे उनके सामने चलचित्र की भांति उभर रही हों। आपकी अद्भुत स्मरण शक्ति को देखकर आश्चर्य होता है । परन्तु इतनी प्रतिभानों का धनी यह व्यक्ति सदैव प्रभाव का जीवन ही जीता रहा है । मुन्शी प्रेमचन्द हिंदी और उर्दू के महान साहित्यकार हुए हैं परन्तु उनका जीवन प्रभाव और कष्ट में बीता। इसी प्रकार शास्त्री जी का जीवन भी प्रभाव और संघर्ष की गाथा है । ऊपर से कठोर, परंतु अंदर से कोमल और व्यथा से भरे हृदय को व्यक्ति उनके सम्पर्क में श्राकर ही जान सकता है ।
केवल जैन समाज ही नहीं अपितु सभी समाजों की यह वृत्ति रही है कि वह व्यक्ति को कम से कम देकर अधिक से अधिक पाना चाहता है । साहित्यकार सदैव समाज से जितना पाता है उससे कहीं अधिक देता है। मुझे विश्वास है कि यदि शास्त्री जी अार्थिक चिंताओं से मुक्त हों तो वे अपने जीवन के शेष काल में भी समाज को अनूठी कृतियाँ दे सकते हैं ।
दिनांक -- ६-११-१६७६
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-- निर्मलकुमार जैन, भागरा मंत्री, श्री महावीर जैन युवासंघ उत्तर - भारत । सचिव, प्राचार्य वल्लभ यंग सोसायटी आगरा ।
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