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परिशिष्ट
“शान्ति व अहिंसक उपक्रम पर अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन" के समापन सत्र में सर्वसम्मत अनुमोदित
लाडनूं घोषणा-पत्र
(शान्तिदूत अणुव्रत अनुशास्ता जैन आचार्य श्री तुलसी गत चार दशकों से जातीय एवं धार्मिक उन्माद तथा हिंसा एवं आणविक युद्ध के बढ़ते हुए खतरों से मानव जाति को मुक्त कराने के लिये विश्व की अहिंसक शक्तियों को संगठित करने का प्रयास कर रहे हैं। लाडनूं सम्मेलन उसी दिशा में एक रचनात्मक कदम था । अहिंसक उपक्रमों के द्वारा पृथ्वी से हिंसा के प्रभाव को समाप्त करने की दृष्टि से अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति संगठनों के प्रतिनिधियों ने इस अवसर पर एक संयुक्त कार्य-योजना स्वीकार की तथा जिसको उन्होंने "लाडनूं घोषणा-पत्र ” का नाम दिया। प्रतिनिधियों ने वैयक्तिक स्तर पर क्रियान्वयन हेतु कुछ अनुशंषाएं प्रस्तुत की उनमें अणुव्रत आचार संहिता को प्रमुखता के साथ स्वीकार किया गया ।)
हम घोषणा करते हैं कि ...
हम, विश्व नागरिक, जो दिनांक ५ से ७ दिसम्बर, १९८८ को “शान्ति एवं अहिंसक-उपक्रम” पर आयोजित ऐतिहासिक सम्मेलन में भाग लेने के लिए लाडनूं (भारत) स्थित जैन विश्व भारती प्रांगण में एकत्रित हुए हैं, यह मानते हैं कि अहिंसक उपक्रम द्वारा शान्ति स्थापित करना हम सबका समान लक्ष्य है। हम यह अनुभव करते है कि कोई भी कार्य योजना बिना दिशा सुनिश्चित किए खतरे से खाली नहीं होती किन्तु जब एक बार दिशा निर्धारित हो जाती है तो उस ओर साहसिक एवं प्रभावी कदम बढ़ाना सम्भव हो जाता है। इसी भावना को ध्यान में रखते हुए हम निम्नलिखित अनुशंषाएं प्रस्तावित करते हैं तथा यह घोषणा करते हैं कि मानव समुदाय द्वारा इनका पालन करने पर शान्ति एवं अहिंसक विश्व के अभ्युदय का मार्ग प्रशस्त होगा :
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