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अनेकान्त और अहिंसा
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मूल्यांकन किए बिना समाज स्वस्थ नहीं रहता। सामाजिकता के महत्त्व को स्वीकार करते हुए भी वैयक्तिक स्वतन्त्रता का मूल्य कम नहीं आंकना चाहिए।
साधना-पक्ष :- एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की स्वतन्त्रता में बाधक न बने। ऐसा वही व्यक्ति कर सकता है, जो अपने विचार को सर्वोपरि सत्य नहीं मानता। अपने विचार को ही सब कुछ मानने वाला दूसरे की स्वतन्त्रता में हस्तक्षेप किए बिना नहीं रहता । इस हस्तक्षेपी मनोवृत्ति को बदलने के लिए स्वतन्त्रता की अनुप्रेक्षा बहुत मूल्यवान है।
सापेक्षता
दार्शनिक पक्ष :- हमारा अस्तित्व स्वतन्त्र और निरपेक्ष है किन्तु हमारा व्यक्तित्व सापेक्ष है। व्यक्तित्व की सीमा में स्वतन्त्रता भी सापेक्ष है। इसलिए कोई भी व्यक्ति पूर्ण स्वतन्त्र नहीं है और वह पूर्ण स्वतन्त्र नहीं है इसलिए सापेक्ष है । विकासवाद का सूत्र है— जीवन का मूल आधार है संघर्ष | अनेकांत का सूत्र है - जीवन का मूल आधार है परस्परावलम्बन । एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के सहारे पर टिका हुआ है।
व्यवहार- पक्ष :-एकांकी दृष्टिकोण वाले विचारक व्यक्ति और समाज को खंडित कर देखते हैं। कोई विचारक समाज को ही सब कुछ मानता है, तो कोई विचारक व्यक्ति को ही सब कुछ मानता है। अनेकांत का दृष्टिकोण सर्वांगीण है। उसके अनुसार व्यक्ति और समाज — दोनों सापेक्ष हैं। यदि समाज ही सब कुछ है तो व्यक्तिगत स्वतन्त्रता अर्थहीन हो जाती है और यदि व्यक्ति ही सब कुछ है, तो सापेक्षता का कोई अर्थ नहीं होता । स्वतन्त्रता की सीमा है सापेक्षता और सापेक्षता की प्रयोगभूमि है व्यक्ति एवं समाज के बीच होने वाला सम्बन्ध-सूत्र ।
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मानवीय सम्बन्धों में जो कटुता दिखाई दे रही है, उसका हेतु निरपेक्ष दृष्टिकोण है। संकीर्ण राष्ट्रवाद और युद्ध भी निरपेक्ष दृष्टिकोण के परिणाम हैं। सापेक्षता के आधार पर सम्बन्ध - विज्ञान को व्यापक आयाम दिया जा सकता है। मनुष्य, पदार्थ, विचार, वृत्ति और अपने शरीर के साथ सम्बन्ध का विवेक करना अहिंसा के विकास के लिए बहुत आवश्यक है। मनुष्यों के प्रति क्रूरतापूर्ण पदार्थ के प्रति आसक्तिपूर्ण, विचारों के साथ आग्रहपूर्ण, वृत्तियों के साथ असंयत, शरीर के साथ मूर्च्छापूर्ण सम्बन्ध है, तो हिंसा अवश्यंभावी है ।
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