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________________ विश्व शान्ति और अहिंसा विरोध केवल एकपक्षीय रहा। आपने विरोध को भी विनोद समझ कर टाल दिया। अहिंसा का विकास होने पर ही यह स्थिति संभव है। मैंने इसका गहराई से अनुभव किया है।" कालूगणी ने पंडितजी की बात सुनकर कहा-“पंडितजी ! जिस व्यक्ति की पाचन-शक्ति ठीक नहीं होती, वह वमन को देखकर वमन करने लगता है। हमने अपनी पाचन-शक्ति को मजबूत बनाया है। इसलिए ऐसा नहीं होता।" इसी बोधपाठ का परिणाम है कि मैंने अपने छोटे से जीवन में अनेक बार विरोध को विनोद मानकर शान्ति से झेला है। अहिंसा का सुरक्षाकवच-सहिष्णुता अहिंसा का सुरक्षाकवच है सहिष्णुता । उसके बिना अहिंसा का विकास संभव नहीं है । पुज्य कालूगणी का जीवन सहिष्णुता का मूर्तरूप रहा है । जीवन की सान्ध्य वेला में उनके बाएं हाथ की तर्जनी अंगुली में एक जहरीला फोड़ा हो गया। उसकी पीड़ा असह्य थी,फिर भी पदयात्रा चलती रही। उन्होंने शल्यचिकित्सा के लिए डॉक्टर द्वारा लाए गये औजारों का प्रयोग नहीं किया। वे भेद-विज्ञान की साधना में लीन रहे। लगभग दो-ढाई महीने तक विशेष रूप से शारीरिक कष्ट रहा । उस समय उनकी जो सहिष्णुता और क्षमता रही, वह अलौकिक थी। अहिंसक व्यक्ति के लिए ऐहिक मूर्छा से मुक्त होना बहुत आवश्यक है। वह अनासक्ति या अमूर्छा ही सहिष्णुता और क्षमता को जन्म देती है । उसके बिना सहिष्णु होना संभव नहीं है। पूज्य कालूगणी के अनेक व्यवहारों और संस्कारों ने मुझे जाने-अनजाने प्रभावित किया है। इससे मेरे मन की धरती पर अहिंसा के बीज प्रस्फुटित होते चले गए। मैंने समय-समय पर उनका प्रयोग भी किया है। यहां केवल एक प्रयोग का उल्लेख करना चाहता हूं। मैंने “अग्निपरीक्षा” नामक पुस्तक लिखी। उसमें महासती सीता की अग्निपरीक्षा का वर्णन है। कुछ साम्प्रदायिक तत्त्वों ने साम्प्रदायिकता का विष फैलाया। उन्होंने जनता को भ्रमित करने का प्रयल किया। फलतः उस पुस्तक को लेकर एक बवण्डर-सा खड़ा हो गया। उसे शान्त करने के अनेक प्रयल किए गए। पर विरोध की ज्वाला शान्त नहीं हुई। आखिर मध्यप्रदेश के उच्च न्यायालय द्वारा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003163
Book TitleVishwashanti aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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