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________________ ऐसे मिला मुझे अहिंसा का प्रशिक्षण ३३ हो सकता और सत्य के बिना अहिंसा नहीं हो सकती। सत्य की अनुपालना के लिए मुझे प्रशिक्षण मिला - " डरो मत। न बुढ़ापे से डरो, न रोग से डरो। न शोक संताप से और मौत से डरो। भूत-प्रेत उसी को सताते हैं, जो डरता है। डरा हुआ व्यक्ति भय से निस्तार नहीं पा सकता। वह तप और संयम को भी छोड़ देता है।” मैंने अपने गुरुवर से अभय का बोधपाठ पढ़ा, तब मैं समझ सका कि अभय पीठिका है, अहिंसा और सत्य की । इसके बिना अहिंसा और सत्य की कल्पना ही नहीं की जा सकती । जिस व्यक्ति का परिग्रह या पदार्थ-संग्रह के प्रति मोह होता है, वह अभय नहीं हो सकता। उस अवस्था में अहिंसा कैसी होगी ? भय अपने आप में हिंसा है। डराना हिंसा है, तो डरना भी हिंसा है। इसलिए न डरो और न डराओ । यह अभय का उभयपक्षीय सिद्धान्त है। अपरिग्रह का मूल्य इसीलिए है कि उसके बिना अभय की बात कभी संभव नहीं होती। पदार्थ के प्रति मूर्च्छा होती है, तभी उसके साथ भय उपजता है और उसकी प्राप्ति में हिंसा होती है। मरने का भय भी इसीलिए है कि शरीर के प्रति मूर्च्छा रहती है। मुर्च्छा अपने आप में परिग्रह है । हिंसा और परिग्रह को कभी विभक्त करके नहीं देखा जा सकता। इसी प्रकार अहिंसा और अपरिग्रह को विभक्त करके नहीं देखा जा सकता। ये सब बातें मुझे पूज्य कालूगणी से सीखने को मिलीं। अभय का प्रशिक्षण अहिंसा की पृष्ठभूमि है अभय और उसका सुरक्षा कवच है सहिष्णुता । पूज्य कालूगणी ने अपने जीवन-व्यवहार से इन दोनों का प्रशिक्षण दिया। उन्होंने अभय और सहिष्णुता का अनुत्तर विकास किया था। मेरे लिए वह सहज बोधपाठ बन गया । बीकानेर में महाराजा गंगासिंह जी राज्य कर रहे थे । वे बहुत प्रतापी, तेजस्वी और दृढ संकल्पवाले शासक माने जाते थे। पूज्य कालूगणी सुजानगढ़ में चातुर्मास बिता रहे थे। महाराजा गंगासिंह सुजानगढ आए। उनका कालूगणी के दर्शन करने का कार्यक्रम था। किसी कारणवश वे स्थान के भीतर नहीं गए। कार में बैठे-बैठे उन्होंने बाहर से ही हाथ जोड़कर नमस्कार किया। पूज्य कालूगणी का ध्यान उस ओर नहीं गया । श्रावकों के मन में एक खलबली-सी मच गई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003163
Book TitleVishwashanti aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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