SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अहिंसा के आधारभूत तत्त्व - गणाधिपति तुलसी अशान्ति और हिंसा तथा शान्ति और अहिंसा-ये दो युगल हैं। जैसे अशान्ति और हिंसा को कभी अलग-अलग नहीं देखा जा सकता, वैसे ही शांति और अहिंसा को विभक्त नहीं किया जा सकता । अहिंसा को मैं व्यापक संदर्भ में देखता हूं। अणुव्रत उस व्यापकता की एक व्यावहारिक संहिता है। भेद हमारी उपयोगिता है। बांटना, विभक्त करना सुविधा है। इस उपयोगिता और सुविधा को हमने वास्तविक मान लिया और उसके आधार पर मानव-जाति को टुकड़ों में बांट दिया । जाति और रंगभेद के आधार पर मनुष्य-मनुष्य में एक घृणा की दीवार खड़ी हो गई। हीनता और उच्चता का एक अभेद्य किला बन गया। यह कहना अतिप्रसंग नहीं होगा कि इस जाति और रंगभेद के कारण हिंसा को निरंतर बढ़ावा मिल रहा है। मनुष्य में हीनता और अहं की ग्रन्थि सहज ही होती है। यह जातिवाद और रंगवाद इन दोनों ग्रंथियों को खुलकर खेलने का मौका दे रहा है। मनुष्य-जाति का एक बहुत बड़ा भाग हीनता की ग्रंथि से ग्रस्त है तो दूसरा भाग अहं की ग्रंथि से रुग्ण है। क्या जातिवाद को समाप्त नहीं किया जा सकता? जाति काल्पनिक है । उसे समाप्त करने की बात सोच भी लें पर रंगभेद एक यथार्थ है । वह कोरी कल्पना नहीं है। उसकी समाप्ति होने पर भी हिंसा की समस्या सुलझेगी नहीं। इसलिए मैं सोचता हूं-अहिंसा की दिशा में हमारी यात्रा भीतर से शुरु हो । जातिभेद और रंगभेद के होने पर भी हिंसा न भड़के, घृणा को अपना पंजा फैलाने का अवसर न मिले, ऐसा कुछ सोचना है और वह भीतरी यात्रा से ही संभव है । मैं अहिंसा की अन्तर्यात्रा में विश्वास करता हूं। हम मनुष्य-मनुष्य के बीच प्रेम का इतना सशक्त वातावरण बनाएं कि उसमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003163
Book TitleVishwashanti aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy