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प्रेक्षाध्यान है। आप श्वास और प्राण को नहीं जानते, श्वास पर ध्यान नहीं देते, फिर भी श्वास बेचारा आता ही रहता है। श्वास महत्त्वपूर्ण है । जो उसकी उपेक्षा करता है, वह स्वयं उपेक्षित हो जाता है। श्वास, प्राण, शरीर और मन-इन चारों को समझे बिना मन की अशान्ति का समाधान नहीं हो सकता।
___ धनवान और गरीब, वृद्ध और युवक, पुरुष और स्त्री-सबका एक ही प्रश्न आता है कि मन की अशान्ति कैसे मिटे ? मन अशान्त नहीं है, वह ज्ञान का माध्यम है। अज्ञानवश हम अशान्ति का उसमें आरोप कर देते हैं। फूल में गंध है। हवा से वह बहुत दूर तक फैल जाती है। क्या गंध चंचल है ? नहीं, हवा के संयोग से गंध का फैलाव हो जाता है। वैसे ही मन राग के रथ पर चढ़कर फैलता है। यदि मन में राग या आसक्ति नहीं है, तो मन चंचल नहीं होता।
'क्षण भर भी प्रमाद नत करो।' यह उपदेश--गाथा है। पर अभ्यास की कुशलता के बिना कैसे संभव है कि व्यक्ति क्षण भर भी प्रमाद न करे।
प्रयोग (1) गमन-योग
चलते समय निरन्तर चलने की स्मृति बनी रहे । दृष्टि पथ पर रहे। कहीं इधर-उधर न देखें ! सारा ध्यान चलने की क्रिया पर केन्द्रित रहे। धीरे-धीरे दाएं पैर को उठाएं, आगे रखें। सारी क्रिया जानते हुए करना है। फिर बाएं पैर को उठाएं, आगे रखें। इस प्रकार प्रत्येक कदम पूरी जागरूकता के साथ रखें। चलते समय केवल यही अनुभूति हो-“मैं चल रहा हूं।" न बात करें। न सोचें।
यह गमन-योग है। इस प्रकार गमन-योग का अभ्यास करते हुए सौ कदम चलें। इसी अभ्यास को बार-बार दोहराएं। (2) जागरूकता के प्रयोग
(क) कुछ ऐसे खेल जिसमें व्यक्ति को पूर्ण जागरूक रहना पड़े इस प्रयोग में किए जा सकते हैं। जैसे
___(1) निदेशक द्वारा दो प्रकार के आदेश दिए जाते हैं-एक में वह सीधा आदेश देता है-हाथ ऊंचा करो, मस्तक झुकाओ, दो अंगुलियां ऊंची करो आदि। दूसरे प्रकार के आदेश में वह पहले एक सांकेतिक शब्द का प्रयोग कर आदेश देता है जैसे-विद्यार्थियों (या साधकों) हाथ ऊंचा करो, विद्यार्थियों बाएं मुड़ो,
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