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प्राक्कथन
आधुनिक उच्च शिक्षा में मूल्य परक शिक्षा की समाविष्टि हेतु देशव्यापी उच्चस्तरीय चिन्तन चल रहा है। भारत का योजना आयोग भी इस दिशा में सक्रिय पग उठाने की तैयारी कर रहा है। अब यह तथ्य लगभग सर्वसम्मत बन चुका है कि उच्च शिक्षा के क्षेत्र में व्याप्त चारित्रिक शून्यावकाश (vacuum) को भरना अत्यन्त अपेक्षित ही नहीं, अनिवार्य है। अन्यथा उच्च शिक्षा पर होने वाले अरबों के राष्ट्रीय व्यय के औचित्य पर लगे प्रश्नचिह्न का कोई सन्तोषप्रद उत्तर नहीं दिया जा सकता। इस प्रकार मूल्यपरक शिक्षा को वरीयता की सूची में प्राथमिक स्थान प्राप्त हो रहा है, पर साथ ही उसकी क्रियान्विति की कठिनाइयां भी अपने आप में समस्या बनी हुई है। अजमेर विश्व विद्यालय ने "जीवन विज्ञान-जैन विद्या" के विषय को बी. ए. के पाठ्यक्रम में स्थान देकर इस समस्या का एक समाधान किया है।
इस पाठ्क्रम के प्रत्येक खण्ड में १५० अंक सैद्धांतिक अध्ययन के लिए तथा ५० अंक प्रायोगिक अभ्यास के लिए निर्धारित है। सैद्धांतिक अध्ययन के लिए प्रत्येक वर्ष में दो प्रश्न पत्र रखे गए हैं और प्रायोगिक अध्ययन के लिए एक प्रश्न पत्र (तृतीय पत्र) निर्धारित है। यह स्पष्ट है कि प्रायोगिक अभ्यास के बिना चरित्र-निर्माण या जीवन-मूल्यों का विकास लगभग असम्भव है। इस दृष्टि से तृतीय पत्र का मूल्य पूर्व पत्रों की अपेक्षा अधिक है।
जीवन विज्ञान-जैन विद्या के प्रथम दो पत्रों में ऐसे अनेक विषयों की सैद्धांतिक चर्चा हुई है जो मनोवैज्ञानिक, शरीर वैज्ञानिक या आध्यात्मिक विकास के महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं को स्पर्श करती हैं। उनके साथ सम्बन्धित अनेक प्रयोगों की जानकारी प्रस्तुत पुस्तक में हैं। कुल मिलाकर तीनों वर्षों का प्रायोगिक पाठ्यक्रम सैद्धांतिक पाठ्यक्रम में चर्चित विधियों की समग्र जानकारी प्रस्तुत कर देता है।
प्रस्तुत पुस्तक बी. ए. के तृतीय खण्ड (अन्तिम वर्ष) के तृतीय पत्र के 'प्रायोगिक पाठ्यक्रम को समग्रता से अपने आप में समेटे हुए है। पाठ्यक्रम के अन्तर्गत छह अभ्यास क्रम रखे गए हैं
१. योगासन ४. कायोत्सर्ग २. प्राणायाम ५. प्रेक्षाध्यान ३. योगिक क्रियाएं ६. अनुप्रेक्षा
इन छ: अभ्यास-क्रमों के प्रारम्भिक प्रयोग प्रथम दो वर्षों में कर लेने के पश्चात् अब तृतीय वर्ष में विशिष्ट एवं कठिनतर प्रयोगों को स्थान दिया गया है। प्रत्येक प्रयोग की विधि
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