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जीवन विज्ञान - जैन विद्या
संचार होने लगता है। भुजंगासन से शरीर में सौष्ठव एवं सौन्दर्य की अभिवृद्धि होती है। इसके नियमित अभ्यास से अपच, मुहांसे, स्नायुदुर्बलता आदि पर काबू पाया जा सकता है।
सावधानी और निषेध
मेरुदण्ड की कशेरुकाओं में कहीं दर्द या कठिनाई हो तो भुजंगासन प्रशिक्षक की अनुमति बिना न करें। 'हार्ट अटैक' अथवा हृदय दुर्बल हो तो भी भुजंगासन नहीं करना चाहिए। हर्निया का रोगी भी यह न करे । भुजंगासन को जल्दी-जल्दी न करें। श्वास-प्रश्वास को व्यवस्थित एवं नियमित रखें। भुजंगासन के पश्चात् पेट के बल लेटकर कायोत्सर्ग करने से आसन का लाभ अधिक मिलता है । भुजंगासन का विपरीत शलभासन भी किया जाना चाहिए। उसके पश्चात् शशंकासन करने से इसके गुणों में अभिवृद्धि हो जाती है ।
समय- भुजंगासन की तीन से पांच आवृत्ति करें। तीन से पांच मिनट तक । गर्दन सीने को तानकर उठाते हैं उस समय श्वास ग्रहण करते हैं। श्वास छोड़ते हुए भूमितल पर जाते हैं। साधना की दृष्टि से इस आसन के समय और आवृत्ति को बढ़ाया जा सकता है।
लाभ- सीने को शक्ति प्रदान करता है। कोष्टबद्धता दूर करता है। भूख को जागृत करता है।
3. धनुरासन
इस आसन में शरीर की आकृति धनुषाकार हो जाती है। इसलिए इसे धनुरासन कहा गया है। इस में मेरुदण्ड धनुष की तरह मोड़ लेता है, हाथ और पैर धनुष की प्रत्यञ्चा की तरह हो जाते हैं।
विधि
आसन पर पेट के बल लेटें । हाथ शरीर के समानान्तर फैला दें। दोनों घुटनों को मोड़ें। पैर नितम्ब पर टिकाएं। दोनों हाथों से पैरों के टखने दृढ़ता से पकड़ें। मुंह बंद रखें। पैरों को जमीन की ओर
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