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आसन
भुजंगासन संपूर्ण शरीर को प्रभावित करता है। पैर के नख से लेकर सिर की चोटी तक का भाग इससे स्वस्थ बनता है।' भुजंगासन परिपूर्ण आसन है। भुजंग सर्वभक्षी कहलाता है। सब कुछ खाकर उसे पचाने की क्षमता भजंग में होती है। जठराग्नि को प्रदिप्ति देने में भुजंगासन विलक्षण है। सामान्य भुजंगासन में श्वास भरकर गर्दन, मुख और सीने को ऊपर उठाते हैं। श्वास का रेचन करते हुए सीने, गर्दन को नीचे लाते हैं। यह प्रचलित भुजंगासन है। ग्रन्थितंत्र पर प्रभाव
भुजंगासन से प्रभावित होने वाली प्रमुख ग्रन्थियां निम्न हैं-थायमस, थायराइड, पिच्यूटरी और गौण रूप से एड्रिनल, गोनाड्स।।
थायमस- यह सीने के मध्य में स्थित है। इसके स्रावों से स्नायु-संवर्द्धन होता है। थायमस ग्रन्थि का स्राव समुचित न हो तो स्नायुओं का विकास भलीभांति नहीं हो सकता। व्यक्ति दुर्बल होने लगता है। स्नायु संस्थान को प्रभावित करने वाली इस ग्रन्थि का स्वस्थ रहना नितान्त अपेक्षित है भुजंगासन के समय जब हथेलियों पर उठकर सीने को सीधा करते है तब 'थायमस' पर समुचित दबाव पड़ता है। जिससे वह व्यवस्थित कार्य करने लगती है। गर्दन को मोड़कर ऊपर आकाश की ओर देखते हैं, तब 'थायराइड' ग्रन्थि पर सम्यक् रूप से दबाव
और खिंचाव पड़ता है परिणामतः थाइराइड ग्रन्थि के स्राव व्यवस्थित होते हैं। जिससे व्यक्ति का शरीर व्यवस्थित रूप से विकसित होता है।
आकाश की तरफ दृष्टि फैलाते समय पिच्यूटरी ग्रन्थि पर खिंचाव आता है, जिससे उसके हार्मोन' के स्राव पर प्रभाव पड़ता है। व्यक्ति की निर्णायक शक्ति प्रादुर्भूत होती है। गौण रूप से यह एड्रिनल, गोनाड्स पर भी अपना प्रभाव डालती है। जिससे क्रोध और काम का नियमन होता है। अनुभव के प्रकाश में
_ 'स्नायु-दौर्बल्य' मनुष्य जाति की विकटतम समस्या है। स्नायुओं को शक्तिशाली बनाने वाली हमारी थायमस' ग्रन्थि के हार्मोन' हैं। भुजंगासन थायमस के हार्मोन्स को प्रभावित कर स्नायु-तंत्र को शक्तिशाली बनाता है। भुजंगासन करते समय पूरा श्वास-प्रश्वास होता है जिससे रक्त शोधन की प्रक्रिया सम्यक्तया होती है। मुखमंडल रक्ताभ बनने लगता है। नख से शिख तक स्नायु-तंत्र में खिंचाव आता है। उससे स्नायुओं मैं रुका हुआ मल दूर होता है और शक्ति का
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