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आलोक प्रज्ञा का
आकाश आकाश के आकार वाला होता है और समुद्र समुद्र के सदृश होता है। गुरुगौरव की सीमा में आचार्यश्री तुलसी तुलसी के समान हैं—उपमातीत हैं ।
१५४. सौभाग्यं साहसं शक्तिः, तेजः कारुण्यमद्भुतम् । ज्ञानं भक्तिश्च निर्माणं, संहतौ तुलसी भवेत् ॥
सौभाग्य, साहस, शक्ति, तेज, अद्भुत करुणा, ज्ञान, भक्ति और निर्माण --- इन सबकी संहति का नाम है आचार्यश्री तुलसी ।
अध्यात्म की चतुष्पदी
१५५. द्रष्टाभावः सत्यनिष्ठा,
प्रतिकूलसहिष्णुता । आस्था स्वभावनिर्माण, स्यादऽध्यात्मचतुष्पदी ||
गुरुदेव ! अध्यात्म क्या है ?
वत्स ! उसके चार पद हैं- द्रष्टाभाव, सत्यनिष्ठा, प्रतिकूल परिस्थिति को सहन करना तथा साथ-साथ अनुकूल परिस्थिति को भी सहना और परिवर्तनीय स्वभाव को बदलने तथा नए स्वभाव के निर्माण में आस्था - यह अध्यात्म की चतुष्पदी है ।
सुख-दुःख का मूल
१५६. सुखं दुःखं तयोर्मूलं, विचारश्च वरावरः । तयोर्मूले स्थितो भावः, अन्तः शुद्धस्तथेतरः ॥
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भन्ते ! सुख-दुःख का मूल कारण क्या है ? शिष्य ! सुख का मूल कारण है -प्रशस्त विचार और दुःख
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