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१५०. ज्ञानायाऽस्तु नमः पुण्यं, दर्शनाय नमोनमः । आनन्दाय नमस्तत् स्यात्, शक्तये मंगलं परम् 11
भन्ते ! नमस्कार किसे और क्यों करना चाहिए ? वत्स ! ज्ञान को नमस्कार, दर्शन को नमस्कार, आनन्द को नमस्कार और शक्ति को नमस्कार, क्योंकि ये सब उत्कृष्ट मंगल हैं ।
तंत्र : मंत्र
१५१. तन्त्र मन्त्रेण संयुक्तं, स्वतन्त्रान् जनयेज्जनान् । तन्त्रं मन्त्रविहीनं तु, यन्त्राण्युत्पादयेच्चिरम् ॥
आलोक प्रज्ञा का
विभो ! क्या तन्त्र का मन्त्रयुक्त होना अनिवार्य है ?
वत्स ! हां, जो तन्त्र [ शासन ] मन्त्र -- मननशक्ति [ रहस्यपूर्ण शक्ति ] से संयुक्त होता है वह मनुष्यों को स्वतन्त्र बनाता है । जो तन्त्र मन्त्र शक्ति से विहीन होता है वह मनुष्य को यन्त्र बनाता है- - परतन्त्र बनाता है ।
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तुलसी का गौरव
१५२. गुरुर्भवेद् यदि गुरुः, तुलसीसदृशो भवेत् ।
हिताय येन शिष्याणां जीवनं सुसमर्पितम् ॥
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गुरु यदि गुरु हो तो वह आचार्य तुलसी जैसा हो, जिन्होंने शिष्यों के हित के लिए जीवन को सुसमर्पित किया है ।
१५३. गगनं गगनाकारं, सागरः सागरोपमः ।
गुरुगौरवसीमायां तुलसी तुलसीसमः ॥
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