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आलोक प्रज्ञा का
जा सकती है ?
वत्स ! हां, खींची जा सकती है। योगी वह होता है जिसकी प्रत्याख्यान की चेतना जागृत रहती है और भोगी वह होता है जो प्रत्याख्यान से शून्य होता है।
समर्थ कौन ? ८७. स समर्थोऽस्ति यस्मिन् स्यात्, प्रत्याख्यानस्य चेतना ।
सोऽसमर्थो जनो योऽस्ति, प्रत्याख्यानविजितः ॥ देव ! समर्थ कौन होता है और असमर्थ कौन होता है ?
भद्र ! जिस व्यक्ति में प्रत्याख्यान की-त्याग की चेतना होती है वह समर्थ होता है और जो प्रत्याख्यान से रहित होता है वह असमर्थ होता है।
सहिष्णुता की अनुप्रेक्षा ८८. शरीरे मानसे भावे, सापेक्षेयं सहिष्णुता।
नाप्रियं सहते किञ्चित्, तपस्वी सहते क्षुधाम् ॥ ___ सहिष्णुता तीन प्रकार की होती है-शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक । ये तीनों सापेक्ष हैं । एक तपस्वी भूख को सह सकता है, किन्तु अप्रिय बात को किञ्चित् भी नहीं सह सकता। यह उसकी शारीरिक सहनशीलता अवश्य है, पर मानसिक और भावनात्मक सहनशीलता नहीं है ।
यह भी सोचो ८६. कि शक्यं किमशक्यं मे, विकल्पे मा श्रमं कुरु ।
यच्छक्यं तविकासाय, कि करोष्युचितं श्रमम ?
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