SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आलोक प्रज्ञा का महान् आश्चर्य ६३. स्वीकारो वा नवा प्रश्नः, स्वस्य बुद्धौ प्रतिष्ठितः । धर्मक्षेत्रेपि हिंसेयं, किमाश्चर्यमतः परम् ? कोन व्यक्ति अहिंसा का स्वीकार करता है और कौन नहीं करता, यह प्रश्न अपनी-अपनी बुद्धि पर निर्भर करता है। किन्तु धर्म के क्षेत्र में भी हिंसा चलती है अर्थात् धर्म के लिए भी हिंसा मान्य है, इससे अधिक आश्चर्य क्या होगा ? मौलिक मनोवृत्ति ६४. एका वृत्तिर्भवेन्मूलं, लोभो रागः परिग्रहः । अधिकारोऽथवा वाच्यः, परास्तेनोपजीविताः ॥ कर्मशास्त्र या अध्यात्मशास्त्र के अनुसार मौलिक मनोवृत्ति एक है। वह है लोभ । उसे राग अथवा परिग्रह भी कहा जा सकता है । कुछ मनोवैज्ञानिकों ने अधिकार को मौलिक मनोवृत्ति माना है । शेष सारी वृत्तियां उसकी उपजीवी हैं । कहां हूं? ६५. प्रश्नः कोऽहमिति ख्यातः, क्वाहमित्यस्ति नो श्रुतः। तैजसं समतिक्रम्य, चैतन्यं साधुतां व्रजेत् ।। 'मैं कौन हूँ'-आज यह प्रश्न विश्रुत है। पर 'मैं कहां हूं'यह स्वर कभी नहीं सुना जाता। साधुता जीवन में तभी आती है जब चेतना तैजसकेन्द्र का अतिक्रमण कर ऊर्वारोहण करती है Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003161
Book TitleAlok Pragna ka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages80
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy