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आलोक प्रज्ञा का
२६. विश्वासो वर्तते दण्ड, न्याय तावान्न विद्यते ।
यदि न्यायः प्रवृत्तः स्याद्, दण्डः किं चिरमुच्छ्वसेत् ? भंते ! समाज से अपराध को कैसे मिटाया जा सकता है ?
वत्स ! आज के मनुष्य का जितना विश्वास दण्ड में है उतना न्याय में नहीं है। यदि समाज में न्याय प्रवृत्त हो जाए तो दण्ड क्या चिरकाल तक उच्छ्वास ले सकेगा ? वह अपने आप समाप्त हो जाएगा।
आत्मा से लड़ो
३०. संकल्पः शमनं ज्ञातृद्रष्टभावविभावनम् ।
स्मरणं प्रतिक्रमणं, युद्धं पंचविधं स्मृतम् ।।
भंते ! भगवान् महावीर ने कहा-अपने आप से लड़ोआत्मा से युद्ध करो। उसके वे कौन से उपाय हैं ?
वत्स ! संकल्प, शमन, ज्ञाताद्रष्टाभाव, स्मरण और प्रतिक्रमण -ये पांच उपाय आत्मयुद्ध के हैं।
आकर्षण क्यों?
३१. इन्द्रियाणि प्रधानानि, मानसं चापि चंचलम् ।
कषायरञ्जिता भावाः, तावदाकर्षणं गृहे ।। भंते ! मनुष्यों का गृहजीवन के प्रति आकर्षण क्यों है ?
वत्स ! जब तक मनुष्य में इन्द्रियविषयों की प्रधानता है, मन चंचल है, भाव कषायों से अनुरंजित हैं, तब तक घर के प्रवि उसका आकर्षण बना रहेगा।
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