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भालोक प्रज्ञा का
२६. निश्चयं नयमाश्रित्य, सर्वोऽप्येकत्वमागतः।
रागद्वेषविमुक्तोऽसौ, एक एव भवेज्जनः ।। निश्चयनय की दृष्टि में सभी एकाकी हैं। जो राग-द्वेषमुक्त जीवन जीता है वह भीड़ में रहता हुआ भी अकेला होता
शाश्वत अशाश्वत का विवेक
२७. शाश्वते लब्धबुद्धीनां, नो काम्यः स्यादऽशाश्वतः ।
अशाश्वते प्रलुब्धो यः, स कि जानाति शाश्वतम् ? भंते ! शाश्वत क्या है ? अशाश्वत क्या है ? वत्स ! अध्यात्म शाश्वत है और भोग अशाश्वत है।
जिन व्यक्तियों की बुद्धि शाश्वत में रमण करती है, उनके लिए अशाश्वत कभी काम्य नहीं होता और जो अशाश्वत में प्रलुन्ध है, वह शाश्वत को क्या जानेगा ?
अपराध और उसका निवारण
२८. अपराधान्निवर्तेत, लोकः प्रायो न चिन्त्यते ।
दण्डः कथं प्रवर्तेत, चित्रं चिन्तेति वर्तते ॥
भंते ! आज समाज में अपराध बढ़ रहे हैं। मनुष्य क्यों नहीं बदल रहा है ? इसका कारण क्या है ? ___ वत्स ! मनुष्य अपराध से बचे-प्रायः इसका चिन्तन नहीं किया जाता। चिन्तन होता है कि दण्ड कैसे चालू रहे ? यह एक आश्चर्य है। तब समाज में अपराध कैसे कम होंगे ? मनुष्य कैसे बदलेगा?
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