________________
आलोक प्रज्ञा का
अनुशासन : एक विमर्श
४. कि स्रोतः कि स्वरूपं च, किं फलं चानुशासनम् ।
स्वतन्त्रता भवेत् स्रोतः, परस्वातन्त्र्यरक्षिका ॥ ५. इच्छारोधः स्वरूपं स्यात्, प्रसादः समताफलम् । सुस्थिरो जायते लोकः, विद्यमानेऽनुशासने ।
भंते ! अनुशासन का स्रोत क्या है ? उसका स्वरूप और फल क्या है?
वत्स ! अनुशासन का स्रोत वह स्वतन्त्रता है, जो दूसरे की स्वतन्त्रता को सुरक्षित रख सके । इच्छा का निरोध करना उसका स्वरूप है और उसका फल है समता और चित्त की प्रसन्नता। अनुशासन के फलित होने पर व्यक्ति अपने आपमें सुस्थिर हो जाता है।
गुरु और शिष्य का संबन्ध ६. आजानिर्देशकारित्वं, संबध्नाति गुरोमंतिम् ।
प्रोतिविनम्रता सेवा, कृतज्ञभावविश्रुतिः ॥
गुरु और शिष्य का गहरा संबंध होता है। गुरु से तादात्म्य स्थापित करने के पांच गुर हैं
१. आज्ञा और निर्देश का पालन २. प्रीति ३. विनम्रता ४. सेवा ५. कृतज्ञता का भाव ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org