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________________ ७४ जीवन विज्ञान : स्वस्थ समाज रचना का संकल्प संपन्न हुआ। 'ओह तक उनके मुंह से नहीं निकला। हमारे संघ के एक श्रावक थे। वे चूरू जिले के एक गाव राजलदेसर में रहते थे। उनका नाम था चांदमल बैद। वे धार्मिक प्रवृत्ति के थे। उनके अदीठ हो गई। उसका ऑपरेशन होना था। डाक्टरों ने कहा-ऑपरेशन बड़ा है, इसलिए सूंघनी सूंघनी होगी। वे वोले-मुझे मूर्च्छित करने की जरूरत नहीं है। मैं जब ध्यान में लीन हो जाऊं तब आप ऑपरेशन कर देना। समय की चिंता मत करना। वे पद्मासन में बैठ गए। ध्यान में लीन हो गए। ऑपरेशन प्रारंभ हुआ। दो घंटे लगे होंगे। वह सम्पन्न हुआ। उन्होंने ध्यान सम्पन्न किया। प्रश्न होता है, ऐसा संभव कैसे होता है? इसका उत्तर है कि जब हमारे मस्तिष्क में प्रशान्त भाव जागृत होता है और एन्डोरफीन स्राव की मात्रा बढ़ती है, तब पीड़ा का अनुभव नहीं होता। अनुप्रेक्षा भाव- परिवर्तन की प्रक्रिया है। स्वतः- सूचना के द्वारा भाव- परिवर्तन होता है। घृणा, ईर्ष्या, भय, द्वेष, साम्प्रदायिकता-ये सारे भाव हैं। इनको अनुप्रेक्षा-सजेशन के द्वारा बदला जा सकता है। अभय की अनुप्रेक्षा से भय का भाव शांत हो जाता है। मृदुता की अनुप्रेक्षा से क्रूरता का भाव धुल जाता है। रंगों के ध्यान के द्वारा भी भाव- परिवर्तन होता है। ये सारे आन्तरिक प्रयोग हैं। भाव से व्यवहार बदलता है और व्यवहार से भाव बदलता है। भाव और व्यवहार का गहरा संबंध है। हम मानते हैं कि जैसा भाव होता है, वैसा व्यवहार बनता है। किन्तु आज की एक पद्धति है 'बायोफीड'। इसके द्वारा व्यवहार को बदल कर भी भाव को बदला जा सकता है। बाहर के द्वारा भीतर को बदला जा सकता है और भीतर के द्वारा बाहर को बदला जा सकता है। कुछ वर्ष पूर्व दिल्ली के स्कूलों में 'अणुव्रत स्टोर' का प्रयोग किया गया। एक खुले कमरे में पेन्सिलें, कॉपियां, पाठ्यपुस्तकें तथा अन्याय सामान्य वस्तुएं, जो विद्यार्थियों के उपयोग में आती हैं, रख दीं। सबके मूल्यों की एक सूची टांग दी और विद्यार्थियों से कहा गया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003160
Book TitleJivan Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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