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संवेद नियंत्रण की पद्धति
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की अवस्था है, आत्मानुशासन की अवस्था नहीं है। बालक जब किशोर बन जाए तब उसे परिणाम- बोध देना अत्यन्त जरूरी है। संवेदनाओं पर नियंत्रण पाने का उपाय है परिणाम- बोध । बच्चों को विपाक का बोध कराना, प्रवृत्ति का परिणाम क्या होगा, इसकी अवगति देना बहुत जरूरी है।
संवेदन- नियंत्रण का दूसरा उपाय है-श्वास- नियंत्रण । श्वासनियंत्रण का अर्थ है-पूरा गहरा श्वास, दीर्घश्वास । यह एक विद्यार्थी के लिए बहुत जरूरी है, क्योंकि उसके मस्तिष्क के लिए आक्सीजन की बहुत अधिक आवश्यकता होती है। शिक्षा का संबंध है मस्तिष्क के साथ, ज्ञान- ग्रहण का संबंध है मस्तिष्क के साथ। पूरे शरीर को जितना आक्सीजन चाहिए उससे तिगुना आक्सीजन मस्तिष्क को चाहिए। उसकी पूर्ति दीर्धश्वास के द्वारा होती है। उस स्थिति में मस्तिष्क काफी सक्रिय हो जाएगा। उसकी क्षमता का विकास होगा। यदि आक्सीजन पर्याप्त मात्रा में नहीं मिलेगा तो मस्तिष्क सुचारु रूप से काम नहीं कर पाएगा। विद्यार्थी में आलस्य और प्रमाद बढ़ेगा, उसका मन पढ़ाई में नहीं लगेगा। वह एकाग्र नहीं हो पाएगा। ज्ञान-ग्रहण की शक्ति क्षीण होने लगेगी। इसलिए विद्यार्थी के लिए दीर्घश्वास का प्रयोग बहुत लाभप्रद है। दीघश्वास भी लयबद्ध होना चाहिए। लयबद्ध श्वास को दो भाषाओं में समझाया गया है
१. जितना समय श्वास लेने में लगे, उतना ही समय श्वास छोड़ने में लगे। प्रत्येक बार यही क्रम चले।
२. श्वास लेने में कम समय और श्वास छोड़ने में अधिक समय लगे। जैसे श्वास लेने में आठ मात्रा का समय लगता है तो छोड़ने में बारह मात्रा का समय लगना चाहिए, जिससे कि कार्बन पूरी मात्रा में निकल जाए। जब कार्बन पूरी मात्रा में निकल जाता है, तब न बेचैनी सताती है और न जम्हाई।
इस प्रकार लयबद्ध श्वास में दो बातें समानरूप से होंगी, चाहे तो श्वास लेने, निकालने में बराबर समय लगे या निकालने में ज्यादा समय लगे। इसका लाभ जान लेना भी आवश्यक है।
बच्चा जब १३-१४ वर्ष की अवस्था का होता है तब उसकी
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