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जीवन विज्ञान : स्वस्थ समाज रचना का संकल्प
शिक्षा के क्षेत्र में ध्यान देना बहुत जरूरी है कि बालक की आदतें जटिल न बनें वह विकारों में न फंसे। इसके लिए उसके संवेगों पर ध्यान देना आवश्यक है। जैसे अक्षर - बोध शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण अंग है वैसे ही जीवन के निर्माण का बोध भी शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। जैसे भाषा और तर्क का बोध शिक्षा का एक अनिवार्य अंग है वैसे ही जीवन के निर्माण का बोध भी शिक्षा का एक महत्वपूर्ण अंग है। जैसे गणित का ज्ञान शिक्षा का एक अनिवार्य अंग है वैसे ही जीवन-निर्माण का ज्ञान सिखाना भी शिक्षा का अनिवार्य अंग है। अक्षर- बोध, गणित का ज्ञान, भाषा और तर्क का बोध-ये आजीविका चलाने के साधन हैं। ये जीवन के साध्य नहीं हैं। कभी कभी आदमी साधन को प्रथम मान लेता है और मूल को भुला बैठता है। आदमी का सारा ध्यान साधन पर अटका रहता है। साधन जिसके लिए है, वह उपेक्षित रह जाता है। सब्जेक्ट आंखों से ओझल हो जाता है और सारा ध्यान ऑब्जेक्ट पर अटका रह जाता है। एक मार्मिक घटना है।
एक सेउ के घर आग लग गई। पड़ोस के लोग एकत्रित हुए और घर का सारा कीमती सामान बाहर निकालने लगे। सारा कीमती सामान बाहर निकाल लिया गया। सेट प्रसन्न था। उसने सोचा, कोई बात नहीं, आग लगी तो लगी, पर कीमती सामान बचा लिया। सेठानी बाहर गई हुई थी। आग की बात सुनते ही वह दौड़ी दौड़ी आई और उसने सेठ से पूछा--आग कैसे लगी? सेठ ने कहा-आग के कारण का कोई पता नहीं है, पर हम सबने मिलकर घर का सारा कीमती सामान बचा लिया है। आभूषणों की पेटी आदि सब पदार्थ बाहर निकाल दिए हैं। सेठानी ने कहा-'अरे मेरा बच्चा कहां है? मैं उसको भीतर के कमरे में सुलाकर गई थी। सेठ बोला-'उसे तो निकालना ही भूल गए। उसकी याद नहीं रही। सेठानी चिल्लाने लगी ! रोट को अपनी भूल का अहसास हुआ। सामान निकाल लिया. बच्चा जलकर मर गया।
भोग्य पदार्थ निकाल लिए गए और भोक्ता आग में जलकर भस्म हो गया। भोग्य वचा, पर उसको भोगने वाला नहीं रहा।
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