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________________ जीवन विज्ञान : स्वस्थ समाज रचना का संकल्प सामाजिक प्राणी बनना है। उसे समाज के साथ संगति बिठाने के लिए, राष्ट्र के लिए प्रामाणिक व्यक्ति साबित होने के लिए, इसी जीवन से अभ्यास करना होता है। विद्यार्थी जीवन में बालक अपने आपको विद्यार्थी मानकर चलता है। शिक्षा के क्षेत्र में मंजिल नहीं होती। शिक्षा तो मार्ग है। मंजिल तो आखिर समाज है। वहां उसे रहना है। उसके साथ उसे संगति बिठानी है। ऐसा होने पर ही उसकी सार्थकता होगी। जहां समाज में हजारों लोग होते हैं, वहां संवेगों का सामंजस्य अत्यन्त आवश्यक होता है। तभी आदमी शांतिपूर्ण जीवन जी सकता है। जहां संवेगों का सामंजस्य नहीं होता है वहां रोज लड़ाई, कलह होता रहता है। पति- पत्नी भी सुख से नहीं जी सकते। सुख से जीने के लिए उन्हें संवेगों पर नियन्त्रण पाना होता है। कलह, संघर्ष, वैमनस्य आदि इसलिए होते हैं कि व्यक्ति अपने संवेगों पर नियन्त्रण नहीं रख पाता। ऐसी स्थिति में पारिवारिक और सामाजिक जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है, सुखी नहीं रह सकता ! सभा- संस्थाओं में भी आपसी कलह चलते रहते हैं। एक दूसरे के संवेगों को सहन करना लोग नहीं जानते। वे कांट-छांट करना नहीं जानते। यह सारा संघर्ष संवेगों का संघर्ष है। मानसिक शान्ति और विश्वशांति की बात संवेगों के नियमन पर आधारित है। अतः हमें सोचना होगा कि शिक्षा के साथ जैसे बौद्धिक विकास की बात जड़ी हई है, वैसे ही उसके साथ संवेग- परिष्कार की बात जुडे । ऐसा होने पर ही शिक्षा अभ्यासात्मक या प्रयोगात्मक हो सकती है। तभी उसकी सार्थकता होगी। जीवन- विज्ञान का यही आधार- बिन्दु है। इस बिन्दु पर शिक्षा प्रणाली का विकास होने पर शिक्षा का अभूतपूर्व अवदान हो सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003160
Book TitleJivan Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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