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व्यवस्था को बदलना ही पर्याप्त नहीं
एक युवती शीशे के सामने जाकर खड़ी हुई। उसका मुंह मुंहासों से भरा हुआ था। वह उसे बहुत भद्दा लग रहा था। उसने शीशे में देखा। मुंह क्रोध से लाल हो गया। उसने शीशे को साफ किया. फिर भी मुंहासों में कोई फर्क नहीं पड़ा। मुंह को साफ किया, शीशे में देखा, पर मुंह कुरूप ही नजर आया। वह सुन्दर नहीं बना। आवेश बढ़ा और उसने शीशे के टुकड़े-टुकड़े कर डाले। पर मुंह साफ नहीं हुआ मुंहासे नहीं मिटे।
शिक्षा बिब है और समाज उसका प्रतिबिम्ब । शिक्षा का तंत्र यदि मुंहासों से भरा है तो समाज वैसा ही बनेगा, समाज को स्वच्छ नहीं बनाया जा सकता।
आज शिक्षा के बारे में सबसे ज्यादा उपेक्षा बरती जा रही है, जबकि सारे समाज का निर्माण शिक्षा से होता है। इस स्थिति में यह सोचना अत्यन्त आवश्यक है कि कितना योग्य होना चाहिए शिक्षक? कितनी चाहिए शिक्षा की व्यवस्था और कितना चाहिए शिक्षक और शिक्षा का सम्मान? किन्तु सारा विपरीत ही चल रहा है। आज गरीबी की समस्या है, जातिवाद और छुआछूत की समस्या है, साम्प्रदायिकता की समस्या है न जाने कितनी और समस्याएं हैं। इन सबका कारण यही है कि आज शिक्षा पद्धति सही नहीं है। ये सब समस्याएं कैसे मिटेंगी? भगवान स्वयं आ जाएं और प्रधानमंत्री के पद पर बैठ जाएं, किन्तु शिक्षा को बदले बिना समाज को नहीं बदला जा सकता। समाज को बदलने का एकमात्र साधन है शिक्षा- तंत्र। वहां विद्यार्थियों में बीज- वपन होता है। शिक्षा बदलेगी तो समाज- व्यवस्था में भी परिवर्तन आएगा। समाज- व्यवरथा को शिक्षा में देखा जा सकता है। जब रूस में समाज- व्यवस्था बदली तब सबसे अधिक ध्यान शिक्षा पर दिया। जब तक शिक्षक को सांचे में नहीं ढाला जाएगा, तब तक शिक्षा नहीं चलेगी। यह तब चलेगी जब विद्यार्थियों को यह समझ में आ जाए कि शिक्षा की प्रणाली हमारे लिए अच्छी है। जब तक बीज का
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