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चार
निरपेक्षता (६) मानवीय एकता।
३. मानसिक मूल्य-(७) मानसिक संतुलन (८) धैर्य । ४. नैतिक मूल्य-(६) प्रामाणिकता, (१०) करुणा, (११) __सहअस्तित्व।
५. आध्यात्मिक मूल्य-(१२) अनासक्ति, (१३) सहिष्णुता; (१४) मृदुता, (१५) अभय, (१६) आत्मानुशासन।
केवल सिद्धान्त- बोध के द्वारा विद्यार्थी अपनी अस्मिता को पहचान सके और सामाजिक न्याय के प्रति समर्पित हो सके, यह कम संभव है। इसके लिए सिद्धान्त और प्रयोग-दोनों का समन्वय आवश्यक है। राजस्थान माध्यमिक बोर्ड के द्वारा जीवन विज्ञान पर चार पुस्तकें तैयार कराई जा रही हैं ! दो पुस्तकें छठी से आठवीं तथा दो पुस्तकें नवीं से ग्यारहवीं कक्षा के लिए। उनमें मूल्य- विकास के प्रयोग और सिद्धान्त-दोनों समन्वित हैं।
श्री चन्दनमल बैद के शिक्षामंत्रित्वकाल में राजस्थान के बारह विद्यालयों में जीवन विज्ञान का प्रयोग किया गया है। प्रत्येक विद्यालय के तीन तीन अध्यापकों को जीवन विज्ञान की पद्धति का प्रशिक्षण दिया गया। उन अध्यापकों ने सौ विद्यार्थियों पर उसका प्रयोग किया। पचास विद्यार्थी प्रयोग वर्ग (एक्सपेरिमेंटल ग्रुप) में थे और पचास नियन्त्रण वर्ग (कन्ट्रोल ग्रुप) में। उनमें मनोवैज्ञानिक परीक्षण (साइकोलोजिकल टेस्ट) और शारीरिक परीक्षण (मेडिकल टेस्ट) किए गए। उसकी रिपोर्ट एन.सी.आर.टी. द्वारा तैयार की जा रही है। आज फिर उस प्रयोग की पुनरावृत्ति हो रही है। इस बार अधिक विद्यालय चने गए हैं। इसमें शिक्षामंत्री, शिक्षा आयुक्त, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के चैयरमैन, राजस्थान राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान, उदयपुर के निदेशक आदि सभी का योग है।
आचार्य तुलसी ने अणुव्रत की आचार- संहिता के माध्यम से अच्छे नागरिक का प्रारूप समाज के सामने रखा था। जीवन विज्ञान उसकी क्रियान्विति का प्रयत्न है। इसका उद्देश्य है
(१) बौद्धिक और भावनात्मक विकास का संतुलन। (२) विवेक और संवेग में सामंजस्य।
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