________________
शिक्षा और जीवन-मूल्य (१) उसका क्रय कर लेता। राजा सोचता कि मूल्य कम दिया जाए और वस्तु अधिक ली जाए। उसने उस अधिकारी को बदलना चाहा। एक दिन राजा ने देखा कि एक किसान धूप में श्रम कर रहा है। कड़ी धूप
और कड़ा श्रम । राजा ने सोचा, क्यों नहीं इसे क्रयाधिकारी नियुक्त कर दिया जाए। राजा ने उसे नियुक्ति दे दी। वह कुछ भी नहीं जानता था। एक बार एक सौदागर पांच सौ घोड़े लेकर आया। राजा को घोड़ों का शौक था। वह सभी घोड़े खरीद लेना चाहता था। उसने सौदागर को क्रयाधिकारी के पास भेज दिया। क्रयाधिकारी ने सौदागर से कहा-'सभी पांच सौ घोड़ों का मूल्य है, पांच सेर चावल। ले जाओ।' सौदागर अवाक रह गया।
ऐसा होता है, जिसको मूल्य-बोध नहीं होता उसके लिए पांच सौ घोड़ों की कीमत पांच सेर चावल से अधिक नहीं होती।
जो ध्यान का मूल्य नहीं जानता, वह उसका क्या मूल्य आंकेगा? वह यही कहेगा कि एक घंटा आंखें मूंदकर बैठ जाना ही ध्यान है।
__ मूल्य-बोध की चेतना को जगाना परम आवश्यक है। एक मूल्य से कभी समाज नहीं चलता। केवल सामाजिक मूल्यों की पूर्ति से समाज नहीं चलता। इसी प्रकार केवल शारीरिक, आर्थिक या बौद्धिक मूल्यों की पूर्ति से कभी समाज नहीं चलता और केवल आध्यात्मिक मूल्यों के आधार पर भी समाज नहीं चलता। समाज एक संगठित और समन्वित तत्त्व है। उसके लिए सभी मूल्यों की पूर्ति जरूरी है। आदमी एकांगी दृष्टि से कह देता है कि समाज अर्थ की पूर्ति से सुव्यवस्थित चल सकता है। सारा भार अर्थ पर डाल दिया जाता है। क्या अर्थ की पूर्ति करने वाले व्यक्ति में कला, संगीत और साहित्य के प्रति रुचि नहीं होती ? क्या उसमें अन्य आकांक्षा और कामना नहीं होती ? आदमी यंत्र नहीं है। उसको यन्त्र मान कर व्यवहार नहीं किया जा सकता । हमें उसके व्यवहार, संवेग और मौलिक मनोवृत्तियों के आधार पर उसके साथ व्यवहार करना होगा। वह किसी यन्त्र का पुर्जा नहीं है, ईंट-पत्थर नहीं है कि जहां चाहे वहां फिट कर दें। वह चेतनावान् प्राणी है, जिसकी अपनी रुचि है, आकांक्षा और कामना है। ऐसी स्थिति में एकांगी दृष्टि से नहीं सोचा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org