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जीवन विज्ञान : स्वस्थ समाज रचना का संकल्प
बौद्धिक विकास के साथ जुड़ी हुई है। बौद्धिक विकास में रूपान्तरण की क्षमता कम है। उसमें निर्णय और निश्चय की क्षमता है, विवेक करने की क्षमता है, पर परिवर्तन की क्षमता नहीं है। बुद्धि के द्वारा बदलने की क्षमता कहां से आएगी?
एक बच्चा बगीचे में गया। वहां एक पट्ट पर लिखा हुआ था-'फूल तोड़ना मना है।' उसकी बुद्धि प्रखर थी। उसने फूल नहीं तोड़ा, पौधे को ही उखाड़ डाला | माली आकर बोला-'अरे! यह क्या किया? पट्ट पर क्या लिखा है? बच्चे ने कहा-'जो लिखा हुआ है उसी के अनुसार काम किया है। लिखा है-फूल तोड़ना मना है। मैंने फूल नहीं तोड़े। पौधे को उखाड़ने की मनाही नहीं है। मैंने पौधा उखाड़ा है, फूल को हाथ नहीं लगाया।
बुद्धि का काम है बात को तर्क में उलझाना, न कि सुलझाना। यह उसकी स्वाभाविक प्रक्रिया है। जो जितनी सीमा में काम कर सकता है वह उतनी ही सीमा में काम करेगा। बुद्धि की अपनी सीमा है। परिवर्तन उसकी सीमा के अन्तर्गत नहीं है।
जीवन विज्ञान की पद्धति में इस प्रश्न पर गंभीरता से चिंतन किया गया है कि आदमी बदलता क्यों नहीं? विद्यार्थी में नैतिकता, प्रामाणिकता और चरित्र का विकास क्यों नहीं होता? ऐसा लगता है कि बदलाव लाने वाला जो तत्त्व है वह अभी शिक्षा प्रणाली में समाविष्ट नहीं है।
आर्थिक व्यवस्था को बदलना सामाजिक प्रक्रिया के साथ जुड़ा हुआ है। आज की अर्थ- व्यवस्था वह बदलेगा जिसके हाथ में अर्थनीति का नियंत्रण हो। आदमी को नियंत्रण का पालन करना है। कैसे करेगा? बुद्धि के द्वारा बात आई और मस्तिष्क में पैठ गई, किंतु वह बदलने के तत्त्व के पास पहुंची ही नहीं। इसलिए अर्थ- व्यवस्था बदली नहीं । इसका मूल कारण है लोभ । लोभ एक संवेग, इमोशन है। वह बदलने में बाधा उपस्थित करता है। आदमी में इतना लोभ है कि वह अपने स्वार्थ को सिद्ध करना चाहता है और नियंत्रण, नियमन और कानून को नीचे रख देना चाहता है। यहां बदलने की बात आती है बुद्धि के स्तर पर। बुद्धि को बदलना नहीं है। बदलना है संवेग को,
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