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सामाजिक मूल्यों का आधार सत्य
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बहुत है । वह अपनी कमजोरी और अप्रकटनीय स्थिति को छिपाता है । जो पाने की लालसा है उसे भी छिपाता है। इस प्रवृत्ति ने संदेह को जन्म ही नहीं दिया, उसे बढ़ाया भी है। ऋजुता में संदेह नहीं उभरता, अविश्वास पैदा नहीं होता। संदेह में शक्ति का अपव्यय होता है। संदेह के अभाव में आदमी पचीस प्रतिशत शक्ति बचा लेता है । यह शक्ति के अपव्यय का न्यूनतम अनुमान है। मायाचार से शक्ति बहुत खर्च होती है ।
संदेह की कोई सीमा नहीं है। आदमी प्रत्येक प्रवृत्ति में संदेह कर लेता है । संदेह के कारण अनेक कल्पनाएं और अनेक विचार उत्पन्न होते हैं और तब आदमी न जाने क्या क्या नहीं करता । आदमी खाट पर सो रहा था। खाट के नीचे पानी से भरा लोटा रखा था । प्रातः सूर्योदय से पूर्व वह शौच के लिए बाहर गया । शौच से निवृत्त होकर घर आया। हाथ धोने बैठा । उसने देखा, हाथ लाल हैं। मन में संदेह हुआ। तत्काल पुनः जंगल में गया, देखा - जहां शौच किया था, वहां की जमीन भी लाल है। वह भारी मन से घर लौटा और खाट पर सोकर आहें भरने लगा। उसने घरवालों से कहा- जल्दी डाक्टर को बुला लाओ। मेरे शरीर से बहुत सारा रक्त बह गया है। मेरा शरीर शिथिल हो चुका है। मैं उठ नहीं सकता। डाक्टर आया । जांच की, सब कुछ ठीक था। इतने में ही बच्चा दौड़ा-दौड़ा आया, बोला- मैंने इस खाट के नीचे लाल रंग से भरा लोटा रखा था, वह कहां गया? खटिया पर पड़े मरीज ने सुना और पूछा-लोटे में लाल रंग घुला था? बच्चा बोला- हां । मरीज उठा और चलने लगा। उसकी कमजोरी समाप्त हो गई।
संदेह के कारण शक्ति का अत्यधिक अपव्यय होता है । छिपाने की बात से संदेह उत्पन्न होता है। यदि संदेह और अविश्वास न हों तो अनेक दुर्घटनाएं और संघर्ष समाप्त हो सकते हैं । पारिवारिक और सामाजिक कलहों का मुख्य कारण संदेह होता है । संदेह के कारण बड़े बड़े साम्राज्य नष्ट होते देखे गए हैं ।
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महावीर और बुद्ध के समय में लिच्छवी गणराज्य एक शक्तिशाली गण था । महाराज चेटक गणाधिराज थे। कोणिक का अमात्य वत्सकार
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