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________________ सामाजिक मूल्यों का आधार : सत्य सत्य विराट और अनन्त है। अनन्त के विषय में कल्पना नहीं की जा सकती। कल्पना तर्क में उलझ जाती है। विज्ञान ने एक यंत्र बनाया है टेलिस्कोप। उससे दो अरब प्रकाश- वर्ष की दूरी पकड़ ली जाती है। दो अरब प्रकाश वर्ष कितनी दूरी का द्योतक है, कल्पना करना भी दुष्कर होता है। एक सेकेण्ड में एक लाख छियासी हजार मील की गति। इस गति से एक घंटा, एक दिन- रात, एक मास, एक वर्ष । यह है एक प्रकाश- वर्ष की दूरी। ऐसे दो अरब प्रकाश- वर्ष | इस दूरी को वह टेलिस्कोप पकड़ लेता है। असंख्य नीहारिकाएं, असंख्य द्वीप और समुद्र । आदमी सोचता है तो दिमाग चकरा जाता है। पर यह है सत्य । अब हम सोचें, कितना विराट् है सत्य। किन्तु इस विराट् सत्य को समझने की दृष्टि से प्रत्येक व्यक्ति 'कूपमंडूक' ही प्रमाणित हो रहा है। सत्य के पांच प्रकार या पांच अर्थ हैं(१) अस्तित्व सत्य (२) नियम सत्य (३) ऋजुता सत्य (४) अविसंवादिता सत्य (५) प्रामाणिकता सत्य १. अस्तित्व सत्य सत्य का एक अर्थ है-अस्तित्व अर्थात् जगत् का अस्तित्व । हमारा अस्तित्व- जगत् इतना बड़ा है कि उसके विषय में एक भाषा में कुछ कह पाना संभव नहीं है। अभी मुझे अस्तित्वात्मक सत्य की व्याख्या नहीं करनी है। २. नियम सत्य सत्य का एक अर्थ है-नियम, जागतिक नियम, सार्वभौम नियम । समय का चक्र अविरल गति से घूम रहा है, यह जागतिक नियम है। दिन होना, रात होना और यह क्रम निरन्तर चलते रहना, यह जगत् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003160
Book TitleJivan Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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