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जीवन विज्ञान: स्वस्थ समाज रचना का संकल्प
अशुचि का भंडार है, खराब है, अपवित्र है। यह हजारों बार सुना गया और दोहराया भी गया। एक नए कोण से देखा तो प्रतीत हुआ कि शरीर के अतिरिक्त आत्मा और परमात्मा तक पहुंचने का हमारे पास कोई साधन नहीं है । इसलिए जब तक शरीर को सही ढंग से नहीं समझा जाता, तब तक सारी बातें व्यर्थ बन जाती हैं।
प्रश्न होता है कि आज शिक्षा के क्षेत्र में चरित्र, अनुशासन और नैतिकता का विकास क्यों नहीं हो रहा है? अन्य क्षेत्रों में भी इनका विकास नहीं है, पर शिक्षा के क्षेत्र में इनका विकास न होना अखरता है, क्योंकि जीवन का निर्माण शिक्षा के माध्यम से ही होता है। ऐसा लगता है कि आज की शिक्षा में बौद्धिक विकास पर तो बहुत बल दिया जा रहा है, उसको बढ़ाने के अनेक प्रयत्न किए जा रहे हैं, किन्तु शेष का विकास उपेक्षित है। यह स्पष्ट है कि जैसे जैसे बुद्धि का विकास होता है, तर्क का विकास होता है वैसे वैसे अच्छाई करने की शक्ति भी आती है और बुराई करने की शक्ति भी आती है। वह बढ़ती है। आज ऐसा प्रतीत हो रहा है कि बौद्धिकता और तर्क ने चोरी, डकैती आदि का विकास किया है। बुद्धि और तर्क तो शस्त्र हैं उन्हें जितना तेज करोगे उतने ही तेज बन जाएंगे। शस्त्र का प्रयोग शल्य चिकित्सा में भी होता है और किसी को मारने में भी होता है बुद्धि और तर्क की भी यही अवस्था है । दार्शनिकों ने अनेक समाधान तर्क के बलबूते पर दिए और उन्होंने दर्शन को तर्कमय बना डाला । पर जब तक दर्शन समाधान नहीं बनता तब तक कुछ उपलब्ध नहीं होता ।
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एक वकील तेली के घर गया। वहां बैठा। बातचीत करने लगा। उसने पूछा - कोल्हू में जुते बैल की आंखों पर पट्टी क्यों बांध रखी है? तेली बोला- 'साहब ! आंखों पर पट्टी इसलिए बांध रखी है कि बैल को पता न चले कि वह एक घेरे में चक्कर लगा रहा है। यदि उसे यह ज्ञात हो जाए तो वह वहीं लड़खड़ा जाएगा, आगे चल नहीं सकेगा।'
वकील ने दूसरा प्रश्न पूछा - 'बैल के गले में घंटी क्यों बांध रखी है?' तेली बोला- 'बैल चलता है तब घंटी बजती रहती है।
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