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________________ समाज का आधार : अहिंसा की आस्था __ आज यह सुना जा रहा है कि हिंसा बहुत बढ़ रही है। कारण की खोज में जाएं और गहरे में उतरें तो पता चलेगा कि सुविधावादी दृष्टिकोण के कारण हिंसा बढ़ रही है। बात तो बहुत दूर की- सी लगती है कि सुविधावाद और हिंसा का क्या संबंध है? किन्तु कभी कभी बहुत दूर की बात बहुत निकट की बात हो जाती है। सुविधावाद और हिंसा-इन दोनों में गहरा संबंध है। जैसे जैसे कष्ट सहने की हमारी क्षमता घटेगी, हमें हिंसा का सहारा लेना पड़ेगा। हम सहन नहीं कर पाएंगे। आज का पूरा वातावरण ऐसा है कि कोई किसी को सहन नहीं करता। असहिष्णुता ने हिंसा को काफी आगे बढ़ाया है। शारीरिक असहिष्णुता और मानसिक असहिष्णुता-कष्ट को न संहना, मानसिक भावों को न सहना, ये दोनों हिंसा के बहुत बड़े निमित्त बनते हैं। एक व्यक्ति कोई घटना को सहन नहीं कर सकता और वह आत्महत्या तक की स्थिति में चला जाता है। एक व्यक्ति दूसरे के द्वारः पैदा की गई थोड़ी-सी अप्रिय स्थिति को सहन नहीं कर सकता, शारीरिक कष्टों को बिलकुल सहन नहीं कर सकता, उस स्थिति में हम अहिंसा की कल्पना नहीं कर सकते। अहिंसा एक शक्ति है, पराक्रम है, वीर्य है। भ्रमवश ऐसा मान लिया गया कि अहिंसा कायर के लिए है। यह बहुत बड़ी भ्रांति है। कायरता का और अहिंसा का कोई संबंध ही नहीं है। कायर आदमी को अहिंसा नहीं छती और अहिंसा को कायर आदमी नहीं छता। दोनों में जैसे अस्पृश्यभाव है। अहिंसा आन्तरिक ऊर्जा का विकास है। परम पराक्रमी व्यक्ति ही अहिंसा की बात सोच सकता है और कर सकता है। जब दृष्टि बदलती है, पराक्रम स्वतः स्फूर्त होता है तब अहिंसा प्रगट होती है। अगर हम कष्ट - सहिष्णुता को छोड़कर अहिंसा की कल्पना करें तो वह हमारी मात्र भ्रान्ति ही होगी। इन दोनों को कभी पृथक् नहीं किया जा सकता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003160
Book TitleJivan Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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