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________________ ८२ / नए मंदिर : नए पुजारी मुझे खाँसी आने लगी थी। यद्यपि मस्ती के कारण मेरा शरीर तो मोटा होता जा रहा था, पर उसकी काँति नष्ट हो चुकी थी। मेरे होंठ काले पड़ चुके थे। सफाई का तो खैर कोई सवाल ही नहीं था। मैं बहुत गंदा रहता था। मेरी माँ को मेरी आदतों का पता चल गया था, पर वह मुझे कुछ कह नहीं सकता थी। कभी एकाध बार कहा भी तो मैंने पिताजी की आदतों का जिक्र कर उसे बंद कर दिया। बाप जब गलत रास्ते पर चलता है तो बेटे को कौन रोक सकता है ? माँ बिचारी कड़वी घूट पीकर रह जाती। कभी-कभी वह मुझे सत्संग में ले जाने की कोशिश करती, पर मेरे लिए अपने दोस्तों की संगत सर्वोपरि थी। घर में तो मैं बस खाने-पीने और सोने के लिए ही आता था। बाकी का मेरा समय तो बाहर ही बीतता था। मुझे वेश्याओं के तथा जुए के अड्डे अच्छी तरह से मालूम थे। पिताजी को मुझे कुछ कहने का सवाल ही नहीं था। वे जब स्वयं सर्वगुण-संपन्न थे, तो मुझे कुछ सीख देने का नैतिक अधिकार भी नहीं था। बल्कि पिताजी इस बात को अच्छा समझते थे कि मैं जिंदगी की मौज लट रहा हूँ। फिर कभी.कभी जब मुझे चोरी के पैसे मिलते तो मैं पिताजी की मदद भी किया करता था। अत: वे तो उलटे मेरे अहसानमंद थे। ___अचानक एक दिन पिताजी का देहांत हो गया। वैसे उनका आदमी तो पहले ही मर चुका था, पर फिर भी वे अपनी जिंदा लाश ढोते रहते थे । शराब ज्यादा पीने से उनकी आंखें खराब हो गई थीं। बोतल ने एक दिन उनको हमसे अलग कर दिया । ___अलबत्ता उस दिन मुझे एक धक्का लगा था। हालांकि पिताजी के क्रिया-कर्म के अवसर पर भी मुझे अपने संबंधियों तथा पिताजी के मित्रों के लिए बोतल का प्रबंध करना पड़ा था, पर अंतिम दिन सब लोग अपनेघर चले गये और घर में मैं और मेरी माँ हम दो ही थे । माँ ने मुझे गीली आँखों से कहा था--देख बेटा ! तेरे पिताजी की गंदी आदतों के कारण ही आज हमें यह दिन देखना पड़ा है। अब तेरे लिए सँभलने का अवसर है । तू यदि इसी रास्ते से जाना चाहता है, तो मेरे घर से निकल जा और यदि सही रास्ते पर चलना है तो अपनी गंदी आदतों को छोड़ दे। एक तो पिता जी की मृत्यु, दूसरे माँ के आँसू और तीसरी विवशता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003159
Book TitleNaye Mandir Naye Pujari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni
PublisherAkhil Bharatiya Terapanth Yuvak Parishad
Publication Year1981
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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