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१२ / नए मंदिर : नए पुजारी ही कबूतर का रूप लेकर उन्हें कुछ कहने आया है । इसी भाव से उन्होंने कबूतर को अपने हाथों पर उठा लिया। सेठ जी के शरीर की गर्मी पाकर थोड़ी देर में उसकी चेतना लोटने लगी। उसने आंखे खोली, अपने पंख फड़फड़ाये। मौत के इस कहर के बीच खुशी की लहर दौड़ गई। सेठ जी ने भगवान को धन्यवाद दिया कि उन्होंने उन्हें एक बुझते हुए दीपक में तेल डालने का अवसर दिया। फिर उन्होंने कबूतर को कुछ दाने डाले, पर वह अब भी थर-थर कांप रहा था। कुछ सर्दी से और कुछ अनजान लोगों से घिरकर वह भयभीत हो रहा था। न जाने वह कितनी दूर से उड़कर आया था ? न जाने उसके मन में अपने परिवार के प्रति क्याभाव आ रहे थे ? सेठ जी ने उसे प्रेम से दुलारा, उसे प्यार भरे शब्द कहे । शायद कबूतर उनकी भाषा को न समझ पाया, पर प्रेम की भाषा को समझ गया। थोड़ी देर में वह बिल्कुल निर्भय हो गया। उसकी प्राणशक्ति लौट आई । वह दाने भी चुगने लगा। एक क्षण के लिए सबका ध्यान मृत्यु से हटकर जीवन पर केन्द्रित हो गया। .. बाहर अभी भी मौत उसी ताल में नृत्य कर रही थी, बल्कि उसका डरावना रूप कुछ गहरा ही हुआ था। बाज़ार में 20 फुट पानी चढ़ गया था। सेठ जी के दुमंजिले को भी पानी छूने लगा था। सभी लोग अपने पूर्वकृत कृत्यों का स्मरण कर रहे थे। एक-दूसरा खुले हृदय से अपने अन्तर्मन की व्यथा प्रकट कर रहा था। सारी गन्दगी मानो धुलकर साफ हो गई थी। इतने में लगभग चार बजे फुर्र से कबूतर उड़ गया। दो-एक क्षण के लिए सब व्यक्ति आश्चर्य चकित हो गये । सेठ जी भी अवाक् रह गये । उनकी आंखें फैलकर ऊपर चढ़ गईं, मुंह खुल गया, हाथ फैल गए. पर बहुत शीघ्र ही ने आत्मस्थ हो गये। संयत स्वर में उन्होंने कहाबस, अब हमें अविलम्ब इस मकान से बाहर निकल जाना चाहिए । यद्यपि बाहर अब भी नन्हीं नन्हीं बूंदें पड़ रही थीं, पर सेठ जी ने जरा भी प्रतीक्षा गहीं की। वे सबसे पहले खुली छत पर बाहर निकल आए। धीरे-धीरे शेष लोग भी बाहर आने लगे। कुछ लोगों को यह सेठ जी की सनक-सी लगी, पर इस क्षण सब कुछ इतने भावात्मक ढंग से घटित हो रहा था कि एक-एक कर सब लोग बाहर निकल आये । अन्तिम आदमी
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