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________________ सार्वजनिक जीवन हैड मास्टर साहब ने आज ही स्कूल का दायित्व संभाला था। बिल्कुल टूटा-फूटा भवन, अव्यवस्थित सामान, उखड़े हुए अध्यापक, उछृंखल लड़के, रूखे ग्रामवासी। उन्हें एक क्षण के लिए लगा, क्यों मैंने एम० एल० ए० साहब से लड़ाई मोल ली ? अच्छे गाँव में अच्छी तरह जमा हुआ था । मैंने ही तो जमाया था उस स्कूल को, पर केवल एम० एल० ए० साहब के लड़के को अवैध तरीके से नवीं कक्षा से उत्तीर्ण नहीं किया, उसका यह परिणाम भुगतना पड़ रहा है । स्थानान्तरण हो गया, इसका भी कोई दुःख नहीं । दुःख है तो केवल इसी बात का कि मैं झूठे गबन के आरोप से लाँछित हुआ । भगवान जानता हैं मेरी गलती नहीं थी, पर बड़ा चतुर है वह एम० एल० ए० । सारे गाँव को भड़का दिया । लड़कों को उकसाया और शिक्षकों को फोड़ लिया। खैर जो होना था, वह हो गया, पर एक अध्या-पक के नाते मेरा यह धर्म है कि मैं जहाँ भी जाऊं, समाज की भलाई करूं । सरकार मुझे तनख्वाह देती है, उसके बदले में मैं स्कूल में सेवा करता हूं । समाज का भी मुझ पर ऋण है, अतः मुझे स्कूल को अच्छी तरह जमाना है । I 1 कुछ दिनों बाद स्कूल जम गया । लड़के ढंग से बात करने लगे । शिक्षक समय पर आने और ईमानदारी से काम करने लगे । हेड मास्टर साहब ने एक दिन गाँव के लोगों को इकट्ठा किया । सबका ध्यान स्कूल के भवन की ओर खींचा। भला स्कूल का भवन अच्छा बने, इसमें किसी को क्या आपत्ति हो सकती थी ! अतः सभी लोग इस प्रस्ताव से बड़े प्रसन्न हुए, पर गाँव के सेठजी ने सोचा कि कहीं बात मेरे पर न आ जाए । अतः उसे टर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003159
Book TitleNaye Mandir Naye Pujari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni
PublisherAkhil Bharatiya Terapanth Yuvak Parishad
Publication Year1981
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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