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________________ १०८ / नए मंदिर : नए पुजारी देखकर चोरी करने तो नहीं आयी ? बुढ़िया ने उस आरोप का कोई प्रतिकार नहीं किया। वह इस आरोप से हतप्रभ हो गयी। इतने में नौकरानी ने उसे धक्का दिया और वह नीचे जा गिरी। उसके शरीर में गहरी चोट आई, पर वह 'कुछ नहीं बोली। धीरे-धीरे उठी और आगे बढ़ गयी। यद्यपि आस-पास में कई लोग खड़े थे, पर मोटी कोठी वाले सेटजी की नौकरानी के विरुद्ध कोई मुंह नहीं खोल सका। मैंने भी एक सभ्य मेहमान के नाते उस नौकरानी से उलझना उचित नहीं समभा, फिर भी मुझसे रहा नहीं गया । मैंने नौकरानी से कहा-- "तुम्हारे पास क्या प्रमाण है, जिसके आधार पर तुमने बुढ़िया को चोर कहा !" उसने उत्तर दिया--बाबू जी ! आप इन बातों को नहीं समझ सकते । आप लोग ऊंचे महलों में बैठे रहते हैं । जन सामान्य की हरकतों का आपको कोई पता नहीं रहता। हमारा इनसे सदा पाला पड़ता हैं, इसलिए हम इनके चेहरों को पहचान सकते हैं।" ___मैंने फिर कहा--''यही तो मैं पूछता हूँ, तुमने कैसे पहचाना कि वह चोर थी !" ___ नौकरानी ने मुझे एक तीखी दृष्टि से देखकर कहा--"तो आपने नहीं देखा । धक्का खाकर भी वह कुछ नहीं बोली। चोर नहीं होती तो क्या वह चुप रहती ? अपराधी मन प्रतिकार करने का साहस खो देता ___ मैं उसके तर्क से दबा तो नहीं, फिर भी मैंने मानवीय पक्ष को छोड़ कर कानूनी पक्ष पर बात करते हुए कहा--"यदि तुम्हें उसके चोर होने का सन्देह था तो तुम थाने में उसे पकड़वा सकती थीं, पर इस तरह किसी व्यक्ति को धक्का दे देना अन्याय है। इस पर कानूनी कार्यवाही की जा सकती है।" ___इस बार नौकरानी ने अपने चेहरे का रंग बदलकर तुनककर कहातो आप यहाँ कानूनी कार्यवाही करने के लिए आए हैं ?" इतना कहकर वह जल्दी से मेरी आंखों से ओझल हो गयी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003159
Book TitleNaye Mandir Naye Pujari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni
PublisherAkhil Bharatiya Terapanth Yuvak Parishad
Publication Year1981
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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