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________________ व्यक्तित्व निर्माण और ध्यान ८७ प्रशासन अथवा राजनीति में जाना है, डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक अथवा शिक्षाविद् बनना है। हर व्यक्ति जीविका के क्षेत्र में एक कल्पना करता है और उस कल्पना को यथार्थ तक ले जाता है। अगर यथार्थ तक कल्पना नहीं पहुंचती तो आज कोई डॉक्टर, नहीं बनता, इंजीनियर या वैज्ञानिक नहीं बनता। इसके साथ हम इस यथार्थ को भी स्वीकार करें-इन कल्पनाओं के साथ केवल जीविका का संदर्भ जुड़ता है, शेष सारे संदर्भ छूट जाते हैं। अच्छा आदमी बनना है, यह संदर्भ बिल्कुल नहीं है। यह तो नहीं कहा जा सकता कि अच्छे आदमी बनने की कल्पना नहीं की जाती। बहुत अच्छे-अच्छे लोग हैं। कल्पना तो करते ही हैं पर यथार्थ तक बहुत कम लोग पहुंच पाते हैं। इसका एक कारण स्पष्ट है-शिक्षा के क्षेत्र में यह विषय उपेक्षित सा ही रहा है। आज शिक्षा केवल जीविका का एक क्षेत्र तैयार करने तक सीमित हो गई है। जीवन निर्माण के विषय की उपेक्षा होगी तो अच्छे व्यक्तित्व का निर्माण कैसे होगा? दिल्ली में शिक्षामंत्रियों की एक गोष्ठी हुई। आचार्य राममूर्ति की अध्यक्षता में गठित समिति की रिपोर्ट पर विचार-विमर्श करने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने देश के शिक्षामंत्रियों की वह संगोष्ठी आयोजित की थी। राजस्थान के शिक्षामंत्री ने कहा-'यह रिपोर्ट अच्छी है। नैतिक शिक्षा अनिवार्य है किन्तु नैतिक शिक्षा के साथ जीवन विज्ञान को जोड़ना बहुत आवश्यक है। वह चरित्र-निष्ठ व्यक्तित्व के निर्माण का प्रायोगिक उपक्रम है। जीविका और जीवन पहला संकल्प होना चाहिए-अच्छा आदमी बनना है। दूसरा संकल्प होना चाहिए-इंजीनियर, डॉक्टर या वैज्ञानिक बनना है। पहला यह संकल्प होगा कि अच्छा मनुष्य बनना है तो फिर अगली बात और अधिक सार्थक बन जाएगी। अच्छा आदमी बनने का संदर्भ सामने नहीं है और केवल जीविका का संदर्भ सामने है तो जीविका अच्छी मिल जाएगी, पर जीवन अच्छा नहीं बनेगा। जब तक हम जीविका और जीवन-दोनों को एक साथ नहीं समझेंगे, अखण्ड व्यक्तित्व का निर्माण नहीं होगा। मनोविज्ञान की भाषा में डिवाइडेड पर्सनेलिटि-विभक्त व्यक्तित्व बहुत खतरनाक होता है। जब तक व्यक्ति अखण्ड और अविभाजित नहीं होता तब तक समाज में अच्छा काम नहीं हो सकता। अखण्ड व्यक्तित्व तभी बन सकता है, जब हम पहले केवल व्यक्तित्व की कल्पना करें। अच्छा आदमी बनना है, यह कल्पना करें तो पूरी बात होगी। अच्छा आदमी बनने की बात नहीं है तो बात अधूरी रह जाएगी। ऐसा लगता है आज एक विभाजन हो गया है। शिक्षा ने यह काम संभाल लिया है कि अच्छी जीविका कमाने वाला बनाना है। यह भी गारन्टी नहीं है कि नौकरी मिल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003158
Book TitleTab Hota Hai Dhyana ka Janma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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