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तब होता है ध्यान का जन्म
जब पहले हम कषाय के अल्पीकरण का अभ्यास शुरू कर दें। ध्यान अकेला नहीं आता । वह अपने परिकर के साथ आता है
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संन्यासी बनने की जरूरत क्या है ?
एक राजा संन्यासी के पास गया। उसने देखा- संन्यासी बड़ा तेजस्वी है । राजा संन्यासी का भक्त बन गया। राजा के मन में आया- संन्यासी को कुछ भेट करना चाहिए। उसने कहा-महाराज ! आपको एक घोड़ा भेंट करना चाहता हूं । बहुत बढ़िया घोड़ा है। आपकी सवारी के लिए काम आएगा । संन्यासी गंभीर मुद्रा में बोला- 'राजन् ! तुम मुझे घोड़ा दोगे?'
'हां, देना चाहता हूं ।'
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'तो पहले एक घर और दे दो । घर के बिना घोड़ा कहां रखूंगा ? '
'महाराज ! घर भी दे दूंगा ।'
'घर दे दोगे तो घर और घोड़े की परिचर्या करने वाला सेवक भी चाहिए । '
'वह सेवक भी दे दूंगा।'
'फिर घर को चलाने के लिए, घोड़े को खिलाने के लिए पैसा चाहिए । '
'वह भी दे दूंगा ।
संन्यासी बोला-'तब फिर मैं तुम्हारे जैसा ही बन जाऊंगा। मुझे संन्यासी बनने की जरूरत ही क्या है?'
पक्का पाहुना है तनाव
अगर आप ध्यान लाना चाहते हैं तो ध्यान के पीछे ये सारी बातें आनी चाहिए । ध्यान आए तो कषाय कम हो । ऐसा होगा तो ध्यान आएगा । ध्यान केवल मानसिक तनाव मिटाने का उपक्रम नहीं है। यदि तनाव बनाने वाले कारक आपके भीतर विद्यमान हैं और आप ध्यान करके उसे मिटाना चाहते हैं तो वह शराब पीने वाली बात हो जाएगी । तनाव आया, शराब पी ली, तनाव मिट जाएगा। शराब का नशा उतरा, तनाव फिर तैयार है। तनाव पक्का पाहुना है । कहा जाता है - कच्चा पाहुना तो चला जाता है किन्तु पक्का पाहुना कभी खाए बिना नहीं जाता। जब सारे शत्रु भीतर विद्यमान हैं, ध्यान क्या करेगा? आधा घण्टा ध्यान के लिए बैठे, थोड़ी शांति मिली, तनाव कम हुआ फिर घर में गए तो वही कथा शुरू हो जाएगी। वही घोड़ा और वही मैदान - सब कुछ तैयार है । व्यक्ति सामायिक करता है, ध्यान करता है तब तक बड़ी शांति रहती है । जब वह घर के वातावरण में जाता है, फिर वैसा का वैसा बन जाता है । इसका अर्थ यही है कि ध्यान का सही उपयोग या अर्थ समझा नहीं गया। उसका सही अर्थ तब होगा जब आप ध्यान में बाधा डालने वाले सारे कारक तत्त्वों का उपशमन करना भी सीखें, उन्हें कम
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