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ध्यान कब सधेगा? यह आवश्यक प्रशिक्षण नहीं है तो ध्यान करने वाला व्यक्ति कभी-कभी पागल ही बन जाता है, बनता है।
अहमदाबाद से समागत एक व्यक्ति ने कहा-मेरे पास अमुक पद्धति से ध्यान करने वाले दसों व्यक्ति आ गए। वे प्राय: विक्षिप्त होकर आए हैं। कारण यही माना गया-सम्यक् प्रशिक्षण नहीं है। डॉ० नथमल टाटिया ने बताया-उनका भतीजा और भतीजे की पत्नि अमुक ध्यान केन्द्र में गए और वहां से पागल होकर आए। ऐसा होता है क्योंकि ध्यान से ऊष्मा बहुत बढ़ती है। व्यक्ति ध्यान करेगा तो गर्मी तो बढ़ेगी ही। उसका शमन कैसे करना चाहिए? क्या पद्धति होनी चाहिए? इन सब बातों का प्रशिक्षण नहीं होता है तो लाभ के स्थान पर नुकसान हो जाता है। ध्यान शिविर में कोरा प्रशिक्षण ही चले, यह आवश्यक नहीं है पर प्रशिक्षण बिल्कुल न हो, यह अच्छा नहीं है। नया-नया व्यक्ति ध्यान शिविर में आए, केवल ध्यान में बैठ जाए, शिविर पूरा होते ही चला जाए तो मानना चाहिए-उसके साथ न्याय नहीं हुआ। उसने केवल ध्यान करना जाना किन्तु उसके पहले कुछ भी नहीं जाना है। जिसका आदि ज्ञात नहीं, जिसका अन्त ज्ञात नहीं केवल मध्य को जान लिया तो क्या मिलेगा? ध्यान में कैसे बैठना चाहिए, यह नहीं जाना और केवल ध्यान को जान लिया तो ध्यान कितना सधेगा? ध्यान तब अवतरित होता है जब उसके लिए उपयुक्त मुद्रा का आलंबन लिया जाता है। इन सबके बोध के लिए आवश्यक है प्रशिक्षण, आवश्यक है गुरु का उपदेश । श्रद्धा
दूसरा तत्त्व है श्रद्धा । ध्यान के प्रति हमारी श्रद्धा होनी चाहिए, आकर्षण होना चाहिए। श्रद्धा को व्यापक संदर्भ में देखें तो श्रद्धा का अर्थ होगा-सम्यक दृष्टिकोण और कषाय का विसर्जन । ये दोनों बातें श्रद्धा के साथ जुड़ी हुई हैं। कषाय बहुत तेज है तथा कलह, कदाग्रह, चुगली, दोषारोपण, ईर्ष्या आदि से युक्त विचार दिमाग में उमड़ रहे हैं, ध्यान कैसे होगा? जिसका ध्यान में आकर्षण है, उसे कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य, परपरिवाद आदि अठारह पापों से विरत होकर आना होगा। दोनों बातें हैं-पहले विरत होकर आएं तो ध्यान अच्छा सधेगा और ध्यान सधेगा तो फिर विरति अपने आप दृढ़ होती चली जाएगी। व्यक्ति ध्यान भी करता है और लड़ाई-झगड़े में, दोषारोपण और ईर्ष्या करने में रस लेता है तो फिर ध्यान कैसे होगा? श्रद्धा का होना आवश्यक है, आवेश को शांत करना आवश्यक है। कषाय के इन प्रकारों से बचना जरूरी है। किसी के बारे में मिथ्या बात न करें, किसी पर मिथ्या आरोप न लगाएं, किसी के बारे में मिथ्या बात न करें, किसी को जाल में फंसाने की बात न सोचें, मायाजाल न बिछायें। यदि ये सब बातें चलती रहें और ध्यान शिविर में भी भाग लेते रहें तो कुछ नहीं मिलेगा। दुनियाभर की पद्धतियों में ध्यान का अभ्यास कर लें तो भी ध्यान नहीं सधेगा। ध्यान तभी सधेगा,
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