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तब होता है ध्यान का जन्म
कर लिया तो प्रयोग वांछित परिणाम नहीं लाएगा। मंद श्वास और गहरा श्वास दो हैं। एक होता है छोटा श्वास, जिसको हम सहज श्वास मानते हैं। छोटा श्वास होगा तो एकाग्रता में बाधा आएगी। मंद श्वास होगा तो एकाग्रता अच्छी सधेगी।
मन्द श्वास का लक्षण है-श्वास लेते समय पेट फूलेगा और छोड़ते समय पेट सिकुड़ेगा। यह हमारी एकाग्रता के लिए बहुत उपयोगी है। दीर्घ श्वास की बात आज विज्ञान सम्मत है। गहरे श्वास की एक परिभाषा कर दी गई भस्त्रिका का श्वास। वह ध्यान के लिए उपयोगी नहीं, बाधक बनता है। इन सब बातों का सामान्य ज्ञान ध्यान की साधना करने वाले को होना चाहिए। इसके लिए प्रशिक्षण बहुत आवश्यक है। संदर्भ प्राणायाम का हम प्राणायाम का संदर्भ लें। हठयोग के आचार्य ने लिखा
प्राणायामेन युक्तेन, सर्वरोगक्षयो भवेत् ।
अयुक्ताभ्यासयोगेन, सर्वारोगसमुद्भवः ।। अगर युक्त ढंग से, सही ढंग से प्राणायाम करते हैं तो सर्व रोग का क्षय होता है। अगर अयुक्त ढंग से प्राणायाम होता है तो सब रोगों का उद्भव हो सकता है। यदि पूछा जाए-प्राणायाम से रोग मिटता है या होता है तो उत्तर होगा-प्राणायाम से रोग होता भी है, मिटता भी है। अगर विधियुक्त करते हैं तो प्राणायाम से रोग का नाश होता है और अविधि से करते हैं तो रोग का उद्भव होता है। इसलिए गुरु का उपदेश आवश्यक है। गुरु के उपदेश का अर्थ हम संकुचित न लें। इतना ही नहीं है कि एक व्यक्ति आया और गुरु ने उसे कुछ बताया। वह भी गुरूपदेश है किन्तु आज के संदर्भ में गुरूपदेश का अर्थ करें तो वह होगा प्रशिक्षण। संदर्भ मुद्रा का
ध्यान का प्रशिक्षण होना चाहिए। ध्यान के लिए कैसे बैठना है? किस मुद्रा में बैठना है? अंगली कैसे रखना है? अंगुली की बात सामान्य प्रतीत होती है किन्तु बहुत उपयोगी है। ध्यान के समय हमारा बायां हाथ नीचे, दायां हाथ ऊपर रहे, हाथ की अंगुलियां आकाश की ओर रहे अथवा ज्ञानमुद्रा में रहे। व्यक्ति ने ध्यान किया, हाथों की अंगुलियों को धरती की ओर नीचे कर दिया तो शक्ति का हास होगा। इन अंगलियों से ऊर्जा बाहर जाती है। ध्यानकाल में अंगुलियों को नीचे की ओर कर दिया तो बहुत सारी ऊर्जा व्यर्थ चली जाएगी। अंगुलियों को इस प्रकार रखना चाहिए, जिससे ऊर्जा का क्षय न हो। अंगुलियां ऊपर की ओर रहे, नीचे लटकती हुई न रहे, यह आवश्यक है। हमें खड़े-खड़े कायोत्सर्ग करना है। हाथ लटके हुए हैं, घुटनों के साथ सटे हुए नहीं हैं तो ऊर्जा का नाश नहीं होगा। इन आवश्यक बातों का प्रशिक्षण होना बहुत जरूरी है। अगर
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