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________________ ध्यान कब सधेगा? ध्यानस्य च पुनर्मुख्यं, हेतुरेतच्चतुष्टयम् । गुरुपदेश: श्रद्धानं, सदाभ्यास: स्थिरं मनः ।। गुरु का उपदेश पहली बात है गुरु का उपदेश। प्रशिक्षण बहुत आवश्यक है। प्रशिक्षण के बिना निवृत्ति या ध्यान की बात सधती नहीं है। प्रशिक्षण होना चाहिए। शरीर का प्रशिक्षण, शरीर के मुख्य-मुख्य घटकों-नाड़ी तंत्र, श्वसन तंत्र, ग्रन्थि तंत्र आदि का प्रशिक्षण बहुत आवश्यक है। आज कोई व्यक्ति ध्यान करे और इनका प्रशिक्षण न ले तो मानना चाहिए-वह अंधेरी कोठरी में ढेला फेंक रहा है। यह आज की सचाई नहीं है, हजारों वर्ष पुरानी सचाई है। हठयोग के प्राचीन आचार्यों ने कहा-जो नाड़ी को नहीं जानता, वह ध्यान या योग करना नहीं जानता। नाड़ी का अर्थ है प्राणप्रवाह का पथ । आज का नाड़ी तंत्र नर्वस सिस्टम से सम्बन्ध रखता है। हठयोग के संदर्भ में नाड़ी का ज्ञान है प्राण प्रवाह का ज्ञान । शरीर में बहत्तर हजार नाड़ियां मानी गई हैं। हमारे शरीर में बहत्तर हजार प्राणप्रवाह के पथ हैं। जो इन प्राण-प्रवाह के पथों को नहीं जानता, वह क्या ध्यान की साधना करेगा? एक योग की एनाटोमी है और एक मेडिकल साइंस की एनाटोमी है। ध्यान करने वाले को दोनों का सामान्य ज्ञान तो अवश्य होना चाहिए। वह नहीं जानता है तो समुचित लाभ नहीं ले पाता। ध्यान से जो होना चाहिए, वह नहीं हो सकता। मन की चंचलता को कम करना है। प्राण के प्रवाह का पता नहीं है तो कैसे कम करेगा? यदि यह प्रशिक्षण मिला-दाएं स्वर का सम्बन्ध अनुकम्पी नाड़ी तंत्र के साथ है, हठयोग की भाषा में पिंगला के साथ है। बाएं स्वर का संबंध परानुकम्पी नाड़ी तंत्र के साथ है, हठयोग की भाषा में इड़ा के साथ है। पिंगला का काम है चंचलता बढ़ाना, सक्रियता को कम करना। यदि ध्यान के समय बाएं स्वर को बंद कर लेता है और दाएं को चला देता है, सूर्य भेदन प्राणायाम कर लेता है तो उल्टा काम हो जाएगा। सूर्य भेदन में बायां बंद रहता है और दायां सक्रिय रहता है। एकाग्रता करनी है तो बायें नथुने से काम लेना होगा। शरीर में सक्रियता लानी है तो दाएं नथुने से काम लेना होगा। यह प्रशिक्षण बहुत आवश्यक है। संदर्भ श्वास का प्रेक्षाध्यान के बारे में कहा जाता है कि यह वैज्ञानिक पद्धति है। इसका तात्पर्य यह है कि इस पद्धति में हठयोग का जो शरीर विज्ञान है और मेडिकल साइंस का जो शरीर विज्ञान है, उसका पूरा उपयोग किया गया है। उसके साथ पूरा तादात्म्य एवं सामंजस्य स्थापित किया गया है और वैसे ही प्रयोग विकसित हुए हैं। एक व्यक्ति को ध्यान का प्रयोग करना है। ध्यान में मंद श्वास होना चाहिए और उसने श्वास को तेज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003158
Book TitleTab Hota Hai Dhyana ka Janma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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