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तब होता है ध्यान का जन्म
वेद्य और वेदक
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प्रश्न है क्या आत्म-दर्शन की हमारे भीतर शक्यता है ? चिन्तन किया गया तो उत्तर मिला- शक्यता है । हम आत्मा का साक्षात्कार कर सकते हैं । साक्षात्कार की अनेक कोटियां बन जाती हैं । साक्षात्कार का एक हेतु है - वेद्य और वेदकभाव । वेदक वह है, जो अनुभव करने वाला है । वेद्य वह है, जिनका अनुभव किया जाए। आत्मा ज्ञाता है, वह दूसरे का वेदन करता है । वस्तु वेद्य बन जाती है । जब आत्मा स्वयं पर ध्यान केन्द्रित करता है, अनुभव को जानना चाहता है, तब वहां वही वेदक और वही वेद्य बन जाता है, वही ज्ञाता और वही ज्ञेय बन जाता है, वही ध्याता और वही ध्येय बन जाता है । वेद्य और वेदक, ज्ञाता और ज्ञेय, ध्याता और ध्येय - दोनों एक ही बन जाते हैं । वेद्य और वेदक- दोनों के बीच कोई दूरी नहीं रहती । जब इस स्थिति का निर्माण हो जाता है, तब आत्म-साक्षात्कार की भूमिका हमारे सामने आती है ।
वेद्यत्वं वेदकत्वं च, यत् स्वस्य स्वेन योगिनः । तत् स्वसंवेदनं प्राहु:, आत्मनोऽनुभवं दृशाम् ।।
उपाय साक्षात्कार का
यह आत्म-साक्षात्कार कब होता है? इसका उपाय खोजा गया । उपाय के बिना कोई सिद्धि नहीं होती। कहा गया
उभयेस्मिन् निरुद्धे तु, स्याद् विस्पष्टमतीन्द्रियम् । स्वसंवेद्यं हि तद् रूपं, स्वसंवित्त्यैव दृश्यताम् । ।
इन्द्रियों को रोको और मन को रोको । जब दोनों का निरोध होगा, तब उस अवस्था में आत्मा का जो रूप है, वह प्रकट होगा । आत्मा का द्वार बन्द है और मन का द्वार खुला है, आत्मा का बोध नहीं हो सकता, साक्षात्कार नहीं हो सकता । जब इन्द्रिय और मन का संवर होता है, तब उस अवस्था में अतीन्द्रिय तत्त्व कुछ स्पष्ट होना शुरू होता है। जब इन्द्रिय राज्य की सीमा समाप्त होती है, तब अतीन्द्रिय राज्य की सीमा में प्रवेश मिलता है ।
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मनोविज्ञान की भाषा है- जब चेतन मन काम करता है, तब अचेतन मन सोया रहता है और जब चेतन मन सो जाता है, तब अचेतन मन भीतर से जागना शुरू करता है । आत्मा छोटे की सीमा में आना नहीं चाहता । शायद यही कारण है कि देवता मनुष्य की सीमा में आना कम पसन्द करते हैं । देवता छोटे की सीमा में कैसे आएगा ? मन का राज्य है छोटा और अतीन्द्रिय चेतना का राज्य है बड़ा। बड़ा राज्य छोटे राज्य में कैसे आएगा?
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