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________________ संभव है आत्मा का साक्षात्कार एक राजा के मन में अपनी सत्ता को देखकर अहं जाग गया। उसके मन में प्रश्न उभरा-इन्द्र स्वर्ग का राजा होता है, पर क्या वह मेरे सामने टिक पाएगा? राजा ने अपने सभासदों से पूछा-बोलो, मैं बड़ा हूं या इन्द्र? राजा के सामने सभासद क्या कहते? सबने एक स्वर में कहा-राजन्! आप बड़े हैं, इन्द्र छोटा है। मैं बड़ा कैसे हूं? इन्द्र छोटा कैसे है? इसका न्याय क्या है? राजा को इस प्रश्न का समाधान नहीं मिला। राजा ने घोषणा करवा दी-जो नागरिक इस प्रश्न का समाधान देगा, उसे आधा राज्य दे दूंगा। राजा भी बड़े विचित्र होते थे। उत्तर देने के लिए बहुत सारे लोग आए। आधा राज्य मिले तो किसका मन नहीं ललचाए। एक युवक ने कहा-'महाराज ! मैं आपके प्रश्न का उत्तर दे सकता हूं।' 'बोलो ! कौन बड़ा है-मैं या इन्द्र?' 'राजन् ! आप बड़े हैं, इन्द्र छोटा है।' 'इसका हेतु क्या है?' 'महाराज एक दिन ऐसा हुआ कि विधाता आपका भाग्य लिख रहा था। उस समय इन्द्र भी सामने आ गया। विधाता ने देखा-यह भी तो अच्छा है। विधाता के मन में विकल्प उठा--किसको राजा बनाऊं? इसको बनाऊं या उसको बनाऊं? विधाता ने निर्णय लिया-न्याय करना चाहिए। उसने एक तराजू मंगाया। एक पल्ले में आपको बिठा दिया, दूसरे पल्ले में इन्द्र को बिठा दिया। इन्द्र हल्का था इसलिए वह ऊपर चला गया। आप भारी थे इसलिए नीचे रह गए। ऊपर का राज्य इन्द्र को मिल गया और नीचे का राज्य आपको मिल गया। आप भारी हैं, इसलिए आप बड़े हैं।' राजा को यह समाधान मान्य हो गया। युवक ने आधा राज्य पा लिया। संवेदन है आत्मानुभव ___ महत्त्वपूर्ण प्रश्न है-कौन-सा राज्य छोटा है और कौन-सा बड़ा है। मन का राज्य छोटा है। वह नीचे रहता है। अतीन्द्रिय चेतना का राज्य बड़ा है, वह सूक्ष्म में चला गया, ऊपर चला गया। उसके लिए इन्द्रिय और मन के राज्य की सीमा को लांघना पड़ता है। इन्द्रिय और मन के राज्य की सीमा को लांघे बिना अतीन्द्रिय तक नहीं पहुंचा जा सकता।। जो आत्म-साक्षात्कार करने की भावना रखता है, उसे सबसे पहले इन्द्रिय और मन का संवर करना होगा। जब इन्द्रिय और मन की चंचलता समाप्त होती है, तब अतीन्द्रिय का बोध शुरू होता है और उसका नाम है-स्वसंवदेन । national Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003158
Book TitleTab Hota Hai Dhyana ka Janma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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